जुंग्जी | Zhuangzi In Hindi PDF

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जुंग्जी – Zhuangzi Hindi Book PDF Free Download

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Zhuangzi In Hindi PDF

                                                                               लाओजु

लाओ तजु को लाओ-दान, लाओ-जि, लि-जी आदि नामो से भी जाना जाता है वो एक महान गुरु और ज्ञानी थे | उन्हें माना जाता है की उनके द्वारा पहली बार ताओ के विषय में लिखा गया है। उन्हें ताओ-ते-चिंग के लेखक के तौर पर भी अच्छी प्रकार से जाना जाता है | कुछ दुसरे विद्वान् मानते है की वास्तव में ताओ-ते-चिंग कविताएँ है जिन्हें बहुत से ताओ विद्वानों द्वारा लाओ- तजु के एक उपनाम से लिखा गया है। यहाँ पर लाओ तजु और येलो सम्राट हुंग दि के बीच भी बहुत ही गहरा संपर्क त होता है।

उन्हें बूढ़े गुरु के नाम से भी जाना जाता है और ‘तीन शुद्धो’ में से एक समझा जाता है। उन्हें परम गुरु के नाम से भी जाना जाता है और देवताओं की तरह पूजा जाता है। लाओ-ज़ि के बारे में कहा जाता है की वे एक पूर्ण मनुष्य के रूप में प्रकट हु थे जिनकी बड़ी श्वेत दाढ़ी थी और बड़े बड़े कुंडल थे, ये दोनों ही जान और दीर्घ जीवन के सूचक है ।

किंवदंतियों के अनुसार लाओ-तजु शाही दरबार में अभिलेखों के नियंत्रक थे | जब वे अस्सी साल के हो गए वे चीन की पश्चिमी सीमा पर जाने के लिए निकल लिए, उदास और मोहभंग हुआ वह व्यक्ति प्राकृतिक पथ का अनुगमन करने में अनिच्छुक था तब एक द्वारपाल ने उनसे उनकी शिक्षाओं को लिखने के लिए कहा इससे पहले की वो छोड़ कर चले जाए | तब उन्होंने ५००० शब्दों वाली ताओ-ते-चिंग का निर्माण किया |

लाओ तजु ने सिखाया की सभी कठिनाईया और सभी संघर्ष सभ व्यर्थ है और एक दुसरे को जन्म देने वाले है | व्यक्ति को हमेशा निष्काम कर्म में स्थापित रहना चाहिए । लेकिन इसका क्या अर्थ था? इसका अर्थ था वस्तुतः कुछ नहीं करना, बल्कि वास्तविकता को जानना तथा प्राकृतिक प्रवाह का अनुगमन करना (नियत कार्य करना) वह मनुष्य घटनाक्रमों के प्रवाह का अनुगमन करता है और वस्तुओ की प्राकृतिक व्यवस्था में हस्तक्षेप नहीं करता है। सबसे प्रथम तथा सबसे महत्वपूर्ण हमे अपने कर्मों में सहज तथा स्वतः प्रवर्तित होना चाहिए | दूसरी तरफ वे मानते थे की इस तरह कुछ नहीं करके वे इस ब्रहमांड की महान उर्जा का संचार कर रहे होते है । ‘कुछ नहीं करके’ वे ‘सभ कुछ प्राप्त कर लेते है’ ।

                                                                                       ज्होंग होऊ

डुंग ज्होऊ, इन्हें ज्हुंग्जी (आचार्य ज्हुंग) के नाम से भी जाना जाता था, वे एक महान ज्ञानी महात्मा थे और उन्हें ज्हुंग्जी पुस्तक का लेखक कहा जाता है। ज्हुन्नजी पुस्तक का नामकरन उनके नाम से प्रभावित होकर ही किया गया है। वो एक तत्ववेता थे जो जो ४र्वी सदी B.C के दौरान रहे थे (वार्निंग स्टेट्स समय के दौरान) वह समय चीनी दर्शनशास्त्र के शिखर का समय था तथा विचारो के सैकड़ो पंथो का समय भी यही था ।

ज्हुंग्ज़ी का जन्म ३६९B.C में सॉंग राज्य में हुआ था, हेनान और शांदग प्रान्त की सीमा के नजदीक और उनकी मृत्यु २८६ B.C में हो गयी | ज्हुंग्ज़ी के बारे में लगभग कुछ भी सही तौर पर नहीं जाना जाता है। उनके बारे में जाना जाता है की उन्होंने अपना समय छू राज्य के दक्षिणी हिस्से में बिताया था तथा कुछ समय उन्होंने ‘की’ राज्य की राजधानी ‘लिंजी’ में भी था | इस बात पर आम तौर पर विश्वास किया जाता है की ज्हुंग्ज़ी पुस्तक के पहले सात अध्याय स्वयं ज्हुंग्ज़ी द्वारा लिखे गए है जबकि अध्याय (८-२२) तथा बाकि मिश्रित अध्याय ( २३-३३) उनके बाद में उनके अनुयायी और शिष्यों द्वारा सम्पादित है ।

ज्हुंग्ज़ी एक ऐसे अप्रत्याशित और विलाक्षित महात्मा की तरह प्रतीत होते है जो निजी सुखो तथा सामाजिक प्रतिष्ठा के बारे में बेपरवाह है | उनके वस्त्र जीर्ण तथा फटे हुए होते हैं और उनके जुते डोर से उनके पैरो से बंधे हुए होते हैं ताकि वे टूट कर अलग न गिर जाए | लेकिन इसके बावजूद भी वे स्वयं को केवल दरिद्र मानते है लेकिन अभावग्रस्त कभी नहीं मानते है ।

पुरे चीन के उच्च अधिकारी कोन्फुसियन को न मानने वाले साधुओं के सामर्थ्य से आकर्षित तथा प्रभावित थे, विशेषकर लाओजी और ज्हुंग्ज़ी के, उन्होंने किसी भी शासक के लिए काम करने से मन करने के कारण । ज्हुंग्ज़ी, जो की पौराणिक कथाओ में लाओजी के सबसे प्रतिष्ठित अनुयायी है उनका चीनी साहित्य तथा संस्कृति पर बहुत गहरा प्रभाव है ।

ज्हुंग्ज़ी ने सिखाया की परम बोध की उत्पत्ति यह जानने से होती है की सभी वस्तुए एक है तथा ताओ असीमित है जिसकी व्याख्या शब्दों द्वारा नहीं की जा सकती है। उनका कहना था की शब्द मछली पकड़ने के जाल की तरह होते है:

एक बार जब अर्थ समझ आ जाए, शब्दों को भुला देना चाहिए वैसे ही जैसे की जाल तभी महत्वपूर्ण होता है जब मछली को पकड़ना होता है और मछली को पकड़ने के बाद उसे दूर रख दिया जाता है। वे सोचते थे की यह संसार एक प्रवाह जो निरंतर प्रवाहित हो रहा है और हमे इसके अनुरूप होकर सामंजस्य स्थापित करना चाहिए ।

लेखक / Writerजुंग्जी / Zhuangzi
भाषा / Languageहिन्दी / Hindi
कुल पृष्ठ / Total Pages372
PDF साइज़3.3 MB
श्रेणी / Categoryधार्मिक / Religious
Source / Creditarchive.org

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