उपनिषत श्री PDF : डॉ उर्मिला श्रीवास्तव द्वारा मुफ्त हिंदी पीडीऍफ़ पुस्तक | Upnishat Shree : by DR Urmila Shrivastav Free Hindi PDF Book

लेखक / Writer | डॉ उर्मिला श्रीवास्तव / DR Urmila shrivastav |
पुस्तक का नाम / Name of Book | उपनिषत श्री / Upnishat Shree |
पुस्तक की भाषा / Book of Language | हिंदी / Hindi |
पुस्तक का साइज़ / Book Size | 116.64 MB |
कुल पृष्ठ / Total Pages | 419 |
श्रेणी / Category | साहित्य / Literature |
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उपनिषत श्री PDF | Upnishat Shree Free Hindi PDF Book Download
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उपनिषत श्री पुस्तक का एक मशीनी अंश
Upnishat Shree Free Hindi PDF Book Download
भारत सदा से अध्यात्म प्रधान देश रहा है। थ्राइहतीय जीवन में तफ्ल्या और आध्यात्मिक चिन्तन का लक्ष्य सृष्टि के रचनाकाल से ही छखर्वोपरि रहा है। अध्यात्मह्ान के अध्याक-दर्शन-भावना का क्रम इस देश में अनव्टत छप से चलता रहा है। थ्रारतीय मस्तिष्क प्राचीनतम परटम्पराओं से ही सर्वोपरि ब्रह्म, जीवन के अन्तिम लक्ष्य मोक्ष पीर मनुष्य का विश्वात्मा के स्थथ सम्बन्ध आदि प्रश्नों के समाधान में प्रयत्नशील है। भ्राटतीय संस्कृति युगों के मनन््थन की देन है। पुरातन के प्रति श्रद्धा भारतीय संस्कृति की अनन्यतग राष्ट्रीय विशेषता है। युगों से चली ३श रही धशध्याल्पिक परम्पराओं के प्रति आयहपूर्ण भक्ति प्रत्येक भारतीय के हृदय में विद्यमान है। उपनिषद् भारतीय आध्यात्मिकता के प्राचीनतम प्रमाण हैं। चिन्तन की छपूर्व विधाओयें को, अद्वितीय रहस्यों को प्रकाश में लाकर वे विश्व के समक्ष उद्घाटित करते हैं। दार्शनिक विचारथाएटा को देखने और प्टखने के लिए उपनिषद् सेसे गवाक्ष हैं जिनमें से ज्ञान, कर्म और भ्रक्ति की; सत्, चित् ७0र आनन्द की रश्मियाँ सतत प्रवाहित रहती हैं। वे यन््थ मानव जीवन के गूढ़तम तथ्यों को प्रकाशित कर आत्मिक शान्ति देने वाले अबूठे शाच्त्र हैं, मब्रुष्य के ज्ञानपथ और जीवनपथ-दोनों को पाथेय प्रदान कर त्ह्मांश से आलोकित कर देने वाले अनुपम खाहित्यांश हैं। युग सज्चेतना के प्राणदायक तत्वों को स्वयं में निहित किए उपनिषद् जीवन निमणि की अपूर्व सामर्थ्य से युक्त हैं। मनुष्य के अन्दर जो कुछ अन्यकारमय है उसे आलोकित करने का कर जो कुछ निर्बल है उसे सबल बनाने का रुकमातर उपाय उपनिषद् ही हैं। ब्रह्ममधु का अन्वेषण उपनिषदों का प्रतिपद्य होने पट बी प्रतिपादन के आयाम स्वानुभूति आधारित हैं। दर्शना खद॑ं वर्णनापकाव्य की उश्चयविध शक्तियों से सम्पन्न ऋषच्षषियों ने ब्रह्मनुभूति के गहनतम तत्व को आत्मसात् कर उपनिषद् दर्शन को अभिव्यक्ति दी है। आचार्य थट्॒तौत ने कहा भी है-नाबुषि कविरित्युक्तं ऋणषिश्च किल दर्शनात्। श्रेयनिष्ठ दर्श की इस विवेचना ने जातिभेद, लिड्रगेद से प्टे रहकर मानव्मात्र को कृतकृत्य किया है, जीवन को उल्लत बनाने वाले विचाटों को शाश्वत स्व॒ट दिया है, जागतिक क्चिारथारा को सत्यपिहित करने का प्रयास क्रिया है। उपनिषत श्री |
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