तर्क संग्रह PDF: अन्नम भट्ट द्वारा मुफ्त हिंदी पीडीऍफ़ पुस्तक |Tark Sangrah : by Annam Bhaṭṭa Free Hindi PDF Book

लेखक / Writer | अन्नम भट्ट / Annam Bhaṭṭa |
पुस्तक का नाम / Name of Book | तर्क संग्रह / Tark Sangrah |
पुस्तक की भाषा / Book of Language | हिंदी / Hindi |
पुस्तक का साइज़ / Book Size | 2.58 MB |
कुल पृष्ठ / Total Pages | 86 |
श्रेणी / Category | साहित्य / Literature , उपन्यास / Upnyas-Novel |
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तर्क संग्रह PDF | Tark Sangrah Free Hindi PDF Book Download
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तर्क संग्रह PDF | Tark Sangrah Free Hindi PDF Book Download
तर्क संग्रह पुस्तक का एक मशीनी अंश
सोरठा–भीपरमात्मा जोय, ष्यान धरत जहेँ अप मिंदें ॥
करो अनुयह सोय, मेरी भवपीडा हरो॥ १ ॥
दोहा-कर कांपे लेखन डिये, रोम रोम थहराय ॥
पूणे के विधी होय यह, घन््थ कठन यह आय ॥ २ ॥
जो ईश्वर कर है ऊपा, पूर्ण होय यह यंथ ॥
बिन ऊपा नहें पाइये, परमेश्वरकी पेंथ ॥ ३ ॥
तकेसेघह टीका करूं, भाषा विस्तार ॥
जे विचार अस को करे, लहेहि पदार्थ सार ॥ ४ ४
– अब भथम अन्थकारके मंगलाचरणको दिखांते हैं:–
निधाय रूदि विश्वेशं विधाय ग्रुरुवंदनम् ॥
बाठानां सुखबोधाय कियते तर्कसंग्रहः ॥ १ ॥
अन्वयः-मया अन्मम्भट्टोपाष्यायेन तर्केसंधहः कियते ।
किं ऊत्वा । विश्वेश हुदि निधाय । प्रनः कि ऊत्वा | गरुवंदनं
विधाय । कस्मे प्रयोजनाय । बालानां सुखबोधाय ॥ ३
में जो अचम्भटद्टोपाष्याय नाम करके हूं सो में त्कसंग्रह नाम- क अथको करता हू.क्या करके करता हूँ, संपूर्ण विश्वका स्वामी जो परमेश्वर उसको हदयमें स्थापन करके अर्थात् निरंतर उसका ध्यान करके. फिर क्या करके,अपने विद्यागरुकों वंदना करके हतने करके यन््थके आदिम ईश्वरका और गरुका नमस्काररुप मंगलभी दिखा दिया.
यत्यपि आगे पूर्वले आचाय्योके बनाये हुए बन्थ बहुत से हैं तथापि उनके पढनेंसे जलदी पदार्थे का ज्ञान नहीं होता है क्योंकि वह अतिकठिन हैं. जिस वास्ते उनमें शीघ्र बुद्धि भवेश नहीं कर सक्ती है इसवारते यह अति स्तुगम नवीन थन््थकी रचना करते हैं जिसके पढनेंसे वालकॉं कों शीघही पदार्थोका बोध हो जावे इसलिये इस अन्थकी रचना निष्फूल नहीं है इसी हेतुकी लेकर मूलकारने कहा हैः– बालानां सुख- बोधाय”अर्थात् बारूकोंकों सुखेनतासे बोधके वास्ते (पदार्थाकाविनाही अमसे ज्ञानके लिये)
यह वर्कसंगघह नामक घन्थको करते – हैं, अब बालक पदके अर्थको लक्षण करके दिखाते हैं: ‘अधी तव्याक्रणकाज्यकोशोड्नघीतन्यायशार्रो बार ” अ-ध्ययन किया है व्याकरण काव्य कोश जिसने और नहीं अध्य-यन किया है न्याय जिसने उसका नाम यहांपर वाल है सो ऐसा बालक लेना. यदि इतनाही लक्षण करते “ अनधीतन्यायशा- ख्रो बालः” अर्थात् नहीं भष्ययन किया है न्याय जिसने उसका नाम बाल है.
तब दूध पीनेवाछलू जों बालक है उसनेश्ी तो न््यायशास्र नहीं अध्ययन किया है वही यहांपर बालक हों जाता सो उसमें अति व्याततिवारणके वारंते अधीतन्याकरणका- व्यकोशनी कहा वह तो काव्य कोश अधीत है नहीं इस वास्ते उसमें अतिव्यात्ति नहीं जाती और जो इतनाही रुक्षण करते अधीतव्याकरणकाज्यकोशो वार? वयब व्यासादिकोंमें अवतिब्याप्ति हो जाती अर्थाव् व्यासादि कही बालक हो जाति क्योंकि उनोनि्ती व्याकरण काव्य कोश अध्ययन किया था सो उनमें अतिव्यात्तिक वारणवास्ते “अनधी स्रो बारूः ” कहा सो ज्यासादिक अनधीतन्यायशास््र नहीं थे किंत अधीत न्याय शासत्र थे इसवारस््ते उनमेंभी लक्षण नहीं जाता
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