Shiv Tantra Rahasya PDF in Hindi
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शिव तंत्र रहस्य PDF | Shiv Tantra Rahasya PDF in Hindi

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शिव तंत्र रहस्य PDF – Shiv Tantra Rahasya Book PDF Free Download

Shiv Tantra Rahasya PDF in Hindi
पुस्तक का नाम / Name of Bookशिव तंत्र रहस्य PDF / Shiv Tantra Rahasya PDF
लेखक / Writerरचना शेखावत / Rachana Shekhavt
पुस्तक की भाषा /  Book by Languageहिंदी / Hindi
पुस्तक का साइज़ / Book by Size62.8MB
कुल पृष्ठ / Total Pages300
पीडीऍफ़ श्रेणी / PDF Categoryधार्मिक / Religious
क्रेडिट / Source archive.org

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शिव तंत्र रहस्य का एक मशीनी अंश

मैं कौन हूँ? कहाँ से आया हूँ? कहाँ जाऊँगा? ये प्रश्न मनुष्य को दर्शन के गंभीर चिन्तन की और उन्मुख करते हैं। हमारे ऋषि मुनि बाह्य जगत् से उदासीन होकर जनकल्याण हेतु इन प्रश्नों का उत्तर योग एवम् चिन्तन द्वारा खोजते थे तभी वे साधना द्वारा सत्य का साक्षात्कार करने वाले मुक्त पुरुष बन सके थे। वेदों में भी इसी जिज्ञासा को इस प्रकार कहा गया है

नासदासीनो सदासीत् तदानींनासीद्रजोनोव्योमा परो यत् ।

किमावरीव कुह कस्य शर्मन्नम्भः किमासीद् गहनं गभीरम् ।।

ये जिज्ञासाएँ ही आज तक दर्शनशास्त्र की मूल समस्याएँ बनी हुई हैं। कोई दर्शन-सम्प्रदाय ऐसा नहीं है जो इन प्रश्नों का अन्तिम उत्तर देता हो।

जो इस सत्य का अनुभव कर लेता है, वह संसार से विरक्त हो जाता है एवं सांसारिक मनुष्य उस परम सत्य को दूसरे साधकों से सुनकर उस सत्य का अनुमान कर सकते हैं किन्तु स्वयं अनुभव तभी कर सकते हैं, जब स्वयं उसी स्थिति को प्राप्त कर लें।

परम तत्त्व अपने अनुभव से पहले ‘नेति नेति’ के रूप में ही जाना जाता है। कोई इसे ब्रह्म कहता है, कोई शिव, तो कोई शब्दब्रह्म एक ही लक्ष्य की ओर उठने वाली ये अलग-अलग मतवादों की दृष्टि है, इनका लक्ष्य एक ही है।

भारतीय संस्कृति में धर्म और दर्शन अलग नहीं है बल्कि एक दूसरे के पूरक हैं। वहाँ धर्म और दर्शन का अन्योन्याश्रित सम्बन्ध है। यहाँ दर्शन मोक्ष के प्रश्न से जुड़ा हुआ है तथा मूल्यों को विशेष महत्त्व प्रदान किया गया है।

भारतीय दर्शन जीवन और व्यवहार से कभी अलग नहीं होता। मोक्ष, कर्म, पुनर्जन्म आदि प्रश्नों का नीतिसम्मत हल ढूंढना दर्शन का ही एक अंश रहा है। धर्म | जीवन का ध्येय तो बताता है- मोक्ष, किन्तु उस तक पहुँचने का उपाय दर्शनशास्त्र बताता है।

शैव दर्शन
धर्म दर्शन की अपेक्षा प्राचीन है। विश्वास पर आश्रित धार्मिक नियमों को जब बुद्धि की कसौटी पर परखा जाने लगा, तब दर्शन का उदय हुआ। शैव दर्शन के साथ भी यही हुआ।

शैव धर्म अत्यन्त प्राचीन धर्म हैं। शैव धर्म के प्रमाण ताम्रपाषाण युग से पूर्व तक के मिलते हैं। प्रत्येक धर्म की अपनी विशिष्ट बौद्धिक विचारधारा होती है जो उस धर्म की उपासना पद्धति को दिशा देती है। जब ये विचार परिपक्व हो जाते हैं। तब दार्शनिक रूप धारण कर लेते हैं।

शैव दर्शन को भी दार्शनिक रूप में आने तक लम्बी यात्रा तय करनी पड़ी है। | प्राचीनकाल से ही भारतवर्ष में दो मुख्य विचारधाराएं थी- (1) वैदिक (2) अवैदिक। इसी को आगम-निगम के रूप में कहा जाता है।

तन्त्र साहित्य का सम्बन्ध आगम’ से है। यह देवीज्ञान शास्त्र माना जाता है। जो कि गुरु-शिष्य परम्परा में अनवरत चलता रहता है। जैसे वेदों को अनादि माना जाता है, वैसे ही आगम को भी अनादि माना जाता है।

आगम की परिभाषा इस प्रकार दी गई है

“आगतं शिववक्त्रेभ्यो गतं च गिरिजामुखे,

मतं च वासुदेवस्य तस्मादागम उच्यते ।। “

तन्त्रालोककार कहते हैं- “समस्त शिवमुख से निकले हुए वचन आगम हैं

इसीलिए इनको तन्त्र भी कहा गया है ‘तन्त्र’ शब्द से यहाँ किन्हीं बौद्धिक समस्याओं और उनके ऊहापोह से कोई संबंध नहीं है। इस दृष्टि से तन्त्र एक दर्शन बन जाता है, स्वात्म चैतन्यात्मक अनुभूति के ‘सत्’ पक्ष के स्वरूप का दर्शन।”

आचार्य जानकीनाथ कौल ‘शिवसूत्र विमर्श की भूमिका में लिखते हैं – प्रथमतः परमशिव की पर संवित्तिरूप परावाणी में समस्तशास्त्र परबोध्यरूपता से विकसित हुआ ही ठहरा रहता है, फिर पश्यन्ती दशा में अहं परामर्शरूपता से ही उदय करता है।

इस पश्यन्ती दशा में भी वाच्य वाचकरूपता का अभाव रहता है तथा भेद • प्रतीत नहीं होता। तत्पश्चात् वही शास्त्र मध्यमा वाणी में अवतरित होकर अपने में ही वाच्य वाचकभाव को प्रकट करके उदय करता है।

अन्त में वही वैखरी दशा में आकर वाच्य वाचेक भाव को प्रकट करके बाह्य जगत् में अवतरित हो जाता है, एवं स्फुट रूपता को प्राप्त होता है।

शेवागम के अनुसार यह शास्त्र पाँच प्रवाहों में प्रसारित होता है। यही प्रवाह शिव की पाँच शक्तियों का विकास है। ये पाँच शक्तियाँ चित, आनन्द, इच्छा, शान और क्रिया कहलाती है। इनको क्रमशः ईशान, तत्पुरुष, सद्योजात, वामदेव और अधोवस्त्र कहते हैं।

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