यौन मनोविज्ञान PDF | Sex Psychology PDF In Hindi
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यौन मनोविज्ञान PDF – Sex Psychology Book PDF Free Download

पुस्तक का नाम / Name of Book | यौन मनोविज्ञान PDF PDF / Yon Manovigyan PDF |
लेखक / Writer | मोहन मक्कड़/ Mohan Makkad |
पुस्तक की भाषा / Book by Language | हिंदी / Hindi |
पुस्तक का साइज़ / Book by Size | 17.4 MB |
कुल पृष्ठ / Total Pages | 350 |
पीडीऍफ़ श्रेणी / PDF Category | |
क्रेडिट / Source | archive.org |
पुस्तक का एक मशीनी अंश
जब हम इन विचारो को ध्यान में रखते है तो हमे यह मालूम होता है कि सादवादी सभी दशाप्रो मे निष्ठुरता की इच्छा से परिचालित क्यो नही होता। सादवादी का उद्देश्य तो भावना को जागरित करना और उसको अनुभूति करना होता है, न कि कष्ट देना | उदाहरणार्थ यह वात बुद्धियुक्त आरहतो के नात्युग्र सादवादी यानी सक्रिय सहयोन सुखदु खास्तित्व वाले कर्ता की दशा से देखी जा सकती है, जिसे पहले ही उद्धृत किया जा चुका है। वह लिखता है–“कोडे मारने को वास्तविक क्रिया से में मुग्ध हो जाता हू ।
मेरी जरा भी यह इच्छा नही रहती कि में स्त्री का अपमान किया करू । स्त्री को कष्ट का अनुभव होना जरूरी है, पर ऐसा अनुभव उसे सिर्फ कोडे लगाने की तेजी की अभिव्यक्ति के रूप में ही होना चाहिए, कष्ट पहुचाने की महज प्रक्रिया से मुझे कोई आनन्द नहीं होता। इसके विपरीत उससे मुझे घृणा होती है । इस गडबडी के अलावा मुझे करता से वहुत घुणा है।
भ्रपती जिन्दगी में मैने सिर्फ एक ही जानवर को जान से मारा है और मे दुख के साथ इस घटना को याद रखता हू । इस बात की सम्भावना है कि सहयौन सुखदु खास्तित्व मे हमारा ध्यान कष्ट के तत्व पर ही जम जाए क्योकि हम इस दशा मे निहित समस्त मानसिक लक्षणों को समभकने में असमर्थ रहते हे ।
कल्पना कीजिए कि एक वाययन्त्र अनुभूतिशील हो जाता है तो उस हालत मे यह कहना युक्तिसगत होगा कि वाद्य का अनुष्ठान कष्ट देना है, और निश्चित रूप से भविष्य मे ऐसे वैज्ञानिक और मनोविव्लेषक मिलेगे जो यह निष्कर्प निकालेगे कि सगीत से प्राप्त होने वाला आनन्द कष्ट देवे से प्राप्त होने वाला आनन्द है, और सगीत का भावनात्मक असर इस प्रकार पहुचाए गए कष्ट के कारण है। सहयौन सुखदु खास्तित्व के अन्तर्गत अस्वाभाविक यौन आवेग की कुछ सब से उत्कट अभिव्यक्तिया आती है।
सादवाद के कारण कुछ अत्यन्त हिसात्मक दुराचार हो सकते हे जो मानवस्वभाव के विरुद्ध हे और मासोकवाद के कारण मानवीय प्रकृति का भद्दा से भदह्दा अपमान हो सकता है। पर यह याद रखना जरूरी है कि दोनो ही स्वाभाविक मानवीय आवेगो पर ञ्राधारित हे, पर वे उन प्रवृत्तियो के श्रन्तिम सीमान्त हे जो अल्प मात्रा में होने पर वेधजैविक क्षेत्र के अन्तर्गत माने जा सकते है ।
सहयोौन सुखदु खास्तित्व का स्वाभाविक सामान्य आधार जटिल और वहु- मुखी है। इस सम्बन्ध मे विशेष रूप से दो बाते ऐसी हे जिन्हे ध्यान में रखन। चाहिए—( १) कष्ट चाहे पहुचाया जाए या सहन किया जाए, पूर्वेराग- प्रक्रिय की गौण उपज है, जो निम्नतर श्रेणी के जानवरों और मनृष्यों मे समान रूप से पाया जाता है। (२) कष्ट चाहे सहन किया जाए चाहे पहुचाया जाए,विशेषत जन्मजात अथवा वातावरण से प्राप्त स्तायविक शिथिल दक्शाओं में स्तायुओ के लिए उत्तेजक है और यौन केन्द्रो पर उसका जोरदार श्रसर होता है ।
यदि हम इन दो आधारभूत बातो को ध्यान मे रखे तो हमे सहयौन सुखदु खा-स्तित्व की प्रक्रिया के बहुरूपी यन्त्र को विशद रूप से समझने में कठिनाई नही होती और हमे उनके मनोविज्ञान की चाभी मिल जाएगी। यौन आवेग का प्रत्येक सहयौन सुखदु खास्तित्व वाला रूप या तो पूवेराग के किसी आदिम स्तर की अ्रति- वृद्धि है (जो कभी-कभी पूर्वजों से आए हुए लक्षणो के रूप मे प्रकट होती है) या फिर वह उन प्रयत्नो को सूचित करती है जो शिथिल शरीर में यौन स्फीति की स्थिति उत्पन्न करने के लिए कामोद्दीपक के रूप मे काम करते हे ।
सब तरह का प्रेम,जैसा कि प्राचीन अग्रेज लेखक राबर्ट बर्टन ने बहुत पहले कहा था, एक प्रकार की दासता ही है। प्रेमी अपनी प्रेमिका का सेवक होता है। उसे प्रेमिका की सेवा करने और उसकी कृपादृष्टि पाने के लिए सब तरह के खतरे उठाने,अनेक सकटो का मुकाबला करने तथा बहुत से बुरे लगने वाले कामो को करने के लिए तैयार रहना चाहिए।
प्रेमी के उस दृष्टिकोण के प्रमाणो से रोमाटिक कविता भरी १डी है। हम आदिम अवस्थाओं की ओर, असभ्य समाजो के बीच, जितना ही पीछे जाते हैं उसमे उतना ही यह देखते हे कि पूर्वराग मे प्रेमी की यह दासता और उन परीक्षाओं की कडाई जिनमें से उसे अपनी प्रेमिका की दयादृष्टि को पाने के लिए गुजरना पडता है, कुल मिलाकर शौकिया दासता के रूप में स्पष्ट हो जाती है। जानवरो में यह चीज उससे भी अधिक अ्रपरिपक्व रूप में देखी जाती है
हृदय जीतने के लिए नर को अपनी शवितयों का अधिक से श्रधिक जोरदार उपयोग करना पडता है और अक्सर वह प्रतिस्पर्धा मे अपने प्रतिहन्द्दी के मुकावले में लह- लुहान और विकलाग होकर लौटता है। समान रूप से कष्ट सहना और कष्ट पहु-चाना पूर्व राग का यदि झ्रावव्यक नही तो आानुप गिक अग अ्रवग्य है । जहा तक मादा का सवाल है, वह उसी प्रक्रिया मे या तो सहानुभूतिपूर्ण अथवा अन्योन्याश्रित प्रभावो द्वारा पृथक् न हो सकने योग्य रूप से उलभी रहती है।
भ्ौर यदि पूर्व राग की प्रक्रिया के दौरान मे मादा का श्रेमी मादा का गुलाम है और यदि वह प्रसन्नतापूर्वक अपने सफल और अ्रसफल प्रेमियो को उन कष्टो को उठाती हुई देख सकती है जिनका कारण वह स्वय है, तो अपनी बारी आने पर मादा भी उस कष्ट को सहन करने के लिए प्रस्तुत हो जाती है जो मँथुनिक प्रकत्रिय। में निहित रहता है, और अपने साथी के तथा उसके बाद उसके सन््तान के श्रधीव हो जाती है।
बहुत से पक्षियों में मैथुन का अवसर त्राने पर जब नर कामोन््माद की अ्रवस्था में पहुच जाता है और अपेक्षा- कृत निष्क्रिय मादा को कष्ट सहना पडता है तो यही देखने मे आता है । इस प्रकार चेफिज्च नामक प्राणी कठोर और निष्ठुर प्रेमनिवेदक है, यद्यपि जब मादा आत्म- समर्पग करने के लिए प्रस्तुत होते लगती है तो वह शान्त और सहानुभूतिशील हो जाता है। प्रेम मे काटना-क्रटवाना भी एक ऐसा तरीका है जो जानवरो और मनुज्यो दोतो में पाया जाता है और घोडे-गधे श्रादि मैथुन के पहले मादा को हलके से काटते हे ।
यह धारणा प्राचीन और वर्तमान दोनो ही युगो मे व्यापक रूप से प्रचलित रही है कि कष्ट पहुचाना प्रेमनिवेदन का एक लक्षण है। लूशियन एक स्त्री से यह कहलाते हँ—जिसने अपनी प्रेमिका पर म॒क्को की बौछार नही की और उसके बालो तथा उसके कपडो को नही फाडा, वह प्रेमिक क्या खाक है ?” सर्वेन्टिस के “रिन्कोनेते’ और ‘कोर्तादिल्लो’ नामक उपन्यासो में भी इसी धारणा का प्रतिपादन किया गया है कि एक पुरुव का अपनी प्रेमिका को मारना-पीटना उसके प्रेम का एक प्रशसित लक्षण है । और जेनेट की एक रोगिणी अपने पति के बारे में कहती है— “बह यह नहीं जानता कि मुझे किस प्रकार थोडा सा कष्ट पहुचाया जाए। कोई भी स्त्री ऐसे पुरुष को प्यार नही कर सकती जो उसे जरा सा कष्ट न पहुचाए ।* इसको उलटे ढग से मिलामा कान्प्रेव के ‘ससारचरित्र’ मे कहते है—एक व्यक्ति की शक्ति उसकी ऋरता है।
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