सरस्वती चालीसा : रणधीर प्रकाशन द्वारा मुफ्त हिंदी पीडीऍफ़ पुस्तक | Saraswati Chalisa : by Randhir Prakashan Free Hindi PDF Book
सरस्वती चालीसा : रणधीर प्रकाशन द्वारा मुफ्त हिंदी पीडीऍफ़ पुस्तक | Saraswati Chalisa : by Randhir Prakashan Free Hindi PDF Book
हिंदू धर्म में माँ सरस्वती को हम सभी ज्ञान की देवी की रुप में जानते है। माता सरस्वती जी को वाग्देवी के नाम से भी जाना जाता है। माँ सरस्वती जी को श्वेत वर्ण अत्यधिक प्रिय होता है। वसंत पचंमी के दिन माँ सरस्वती की पूजा की जाती है। मान्यता यह हैं की इस दिन मां सरस्वती की पूजा करने से ंमां का आर्शीवाद मिलता है। सरस्वती जी की पूजा साधना में सरस्वती चालीसा का विशेष महत्त्व है। मान्यता यह है की श्री कृष्ण जी ने सर्वप्रथम माता सरस्वती जी की आराधना की थी।
पुस्तक का नाम / Name of Book | सरस्वती चालीसा / Saraswati Chalisa Hindi Book in PDF |
लेखक / Writer | रणधीर प्रकाशन / Randhir Prakashan |
पुस्तक की भाषा / Saraswati Chalisa Book by Language | हिंदी / Hindi |
पुस्तक का साइज़ / Book by Size | 6.5 MB |
कुल पृष्ठ / Total Pages | 36 |
श्रेणी / Category | धार्मिक / Religious , हिंदू / Hinduism |

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Saraswati Chalisa पुस्तक का विवरण –
श्री सररत्वत्ती चालीसा
जनक जननि पदम दुरज, निज मस्तक पर धारि।
बन्दौं मातु सरस्वती, लुद्दि बल दे दातारि॥
पूर्णं जगत में व्याप्त तव, महिमा अभित अनंतु।
रामसागर के पाप को, मातु तुही अब हन्तु॥
जय श्रीसकल बुद्धि बलरासी।
जय सर्व॑ज्ञ अमर अविनाशी ॥
जय जय जय वीणाकर धारी।
करती सदा सुहंस सवारी ॥
रूप चतुर्भुज धारी माता।
सकल विश्व अन्दर विख्याता ॥
जग में पाप बुद्धि जब होती।
तबही धर्मं की फोको ज्योति।॥।
तबहि मातु का निज अवतारा।
पाप हीन करती महि तारा॥
बाल्पीकिजी जो थे ज्ञानी।
तव प्रसाद महिमा जन जानी ॥
रामायण जो रचे बना्ई।
आदि कवि पदवी को पाई॥
कालिदास जो भये विख्याता।
तेरी कृपा दृष्टि से माता।॥
तिन्ह न ओर रहेउ अवलम्बा।
केवल कृपा आपको अम्बा ॥
करहु कृपा सों मातु भवानी।
दुखित दीन निज दासहि जानी ॥
पुत्र करहुं अपराध बहूता ।
तेहि न धरह चित सुन्दर माता॥
राखु लाज जननि अब मरी।
विनय करु भाति बहुतेरी॥
मे अनाथ तेरी अवलंबा।
कुपा करऊ जय जय जगदंबा ॥
मधु कैटभ जो अति बलवाना।
बाहुयुद्ध॒ विष्णु से ठाना॥
सपर हजार पांच ये घोरा।
फिर भी मुख उनसे नहीं मोरा ॥
तेहि ते मृत्यु भटुं खल केरी।
पुरवह॒ मातु मनोरथ मेरी ॥
चण्ड मुण्ड जो थे विख्याता।
छण महु संहारे तेहि माता ॥
रक्तबीज से समरथ पापी।
सुरमुनि हदय धरा सब कपी ॥
काटेड सिर जिम कदली खम्बा।
बार बार बिनऊं जगदंबा॥
जगप्रसिद्ध जो शुभ निशंभा।
छण मेँ वधे ताहि त् अप्ना॥
भरत-मातु बुद्धि फेरे जाई।
रामचन्द्र वनवास कराई ॥
एहिविधि रावन वध तू कोन्हा।
सुर नर मनि सनको सुख दीन्हा ॥
को समरथ तव यञ गुनं गाना।
निगम अनादि अनंत खाना ॥
विष्णु सुद्र अज सकि नं मारी।
जिनको हो तुम रक्षाकारी।।
रक्त॒ दन्तिका ओर शताक्षी ।
नाम अपार है दानव भक्षी ॥
दुर्गम काज धरा पर कन्हा।
दुगा नाम सकल जग लीन्हा ॥
दुगं आदि हरनी त् माता।
कृपा करहु जब जब सुखदाता ॥
नृप कोपित को मारन चाहे।
कानन में धेर मृग नाहे॥
सागर मध्य पोत के भंजे।
अति तूफान नहिं कोऊ संगे॥
भूत प्रत बाधा या दुःख में।
हो दरिद्र अथवा संकट में।
नाम जपे मंगल सब होई।
संशय इसमे करइ न कोई ॥
पुत्रहीन जो आतुर भाई।
सबे छंडि पूजं एहि माई ॥
करे पाठ नित यह चालीसा।
होय पुत्र सुन्दर गुण ईशा ॥
धूपादिक नैवेद्य चढावें ।
संकट रहित अवश्य हो जावै॥
भक्ति मातु की करे हमेश्ञा।
निकट न आवै ताहि कलेशा ॥
बंदी पाठ करे सत बारा।
बदा पाश दूर हो सारा॥
रामसागर बाधि हेतु भवानी।
कोजे कृपा दास निज जानी ॥
मातु सूयं कान्ति तव, अन्धकार मम रूप।
डूबन से रक्षा करहु, परू न भै भव कूप॥
बल बुद्धि विद्या देहु मोहि, सुनहु सरस्वती मातु।
राम सागर अधम को आश्रय तू ही ददातु॥
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