संगीत विशारद PDF : वसन्त द्वारा मुफ्त हिंदी पीडीऍफ़ पुस्तक | Sangeet Visharad : by Vasant Free Hindi PDF Book

लेखक / Writer | वसन्त / Vasant |
पुस्तक का नाम / Name of Book | संगीत विशारद / Sangeet Visharad |
पुस्तक की भाषा / Book of Language | हिंदी / Hindi |
पुस्तक का साइज़ / Book Size | 9.45 MB |
कुल पृष्ठ / Total Pages | 224 |
श्रेणी / Category | साहित्य / Literature , संगीत / Music |
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संगीत विशारद PDF | Sangeet Visharad Free Hindi PDF Book Download
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अग्नि परीक्षा पुस्तक का एक मशीनी अंश
संगीतकार और संगीतज्ञ के लिये पुस्तकालय रखना नितांत आवश्यक है, बिना इसके ये दोनों अपनी सांगीतिक प्रवृत्तियों की अभिवृद्धि नहीं कर सकते | प्रत्येक संगीतज्ञ को चाहे वह छोटे ही रूप में क्यों न हो, एक लाइब्रेरी अवश्य रखनी चाहिये। साहित्य ओर सद्भीत का घनिष्ट सम्बन्ध हे। इन दोनों को अलग-अलग नहीं किया जा सकता । जिस सद्भीत की प्रष्ठभूमि में उच्च रचनाएँ, रम्य भावनाएँ, सुन्दर विचार, रंगीन एवं कलात्मक उड़ाने नहीं होतीं, वह सज्जीत शाश्वत एवं अपूर्व नहीं बन सकता। जीवन के ठोस तत्वों पर सद्जीत की नींव होनी चाहिये जिससे विश्व को उज्बल आलोक प्राप्त हो सके, शक्तिशाली सांगीतिक उत्पादन मिल सके; सन्नीत की उच्च कोटि की अभिव्यक्ति अपने सुन्द्रतम रूप में प्रस्तुत हो सके ओर सल्लीत का स्वरूप पुष्टिकारी होकर विश्व को सम्मोहित कर सके । अतः आपका परम कवतंव्य है कि सद्भीत की किसी भी उपयोगी पुस्तक को हाथ से न निकलने दें ओर उसे खरीदकर अपने पुस्तकालय का उपकरण बनायें । अवकाश के समय आप इन पुस्तकों का मनन कर सकते हैं। आपको यह स्मरण रखना चाहिये कि आपको सद्भीत का केवल व्यवहारिक ज्ञान ही कुशल सद्गभीतज्ञ नहीं बना सकता जब तक कि आपको सहन्नीत का पूर्णरूपेण शास्त्रीय ज्ञान न हो। यह शाब्लीय ज्ञान अध्ययन से ही अजित किया जा सकता है । व्यवहारिक ज्ञान का विकास शाश्रीय ज्ञान पर ही आधारित हे। जितना आपका शाख्रीय ज्ञान विकसित होगा उतना ही अधिक आपका व्यवहारिक ज्ञान परिपुष्ट होगा । जो व्यक्ति प्रमादी हैं और विधिवत अध्ययन नहीं कर पाते, उनकी सांगीतिक प्रतिभा भी अधूरी रह जाती है। सद्नीत की सफलता केवल वही नहीं हे जो आपको सल्लीत प्रदर्शित करते समय श्रोताओं द्वारा तालियों की गड़गड़ाहूट के मध्य प्राप्त होती है। यह वालियों की गड़गड़ाहुट की ख्याति तो क्षणमंगुर होती है,इसमें स्थायित्व नहीं होता, यह केवल चार दिनों की चांदनी के समान होती है। अतः यह कला को ऊपर नहीं उठा सकती | इसके लिये आपको सल्लीत साहित्य का पूर्ण अध्ययन करना पड़ेगा । अध्ययन करते समय अपना दृष्टिकोण संकीर्ण न बनाइये। आपको प्रत्येक पुस्तक को चाहे वह भारतीय लेखक की हो अथवा विदेशीय लेखक की, मनन अवश्य करना चाहिये। आप इस तथ्य को हमेशा याद रक्खें कि प्रत्येक भाषा में सुन्दर कलाकार हो गये हैं, अतः अपने दृष्टिकोण को उदार बनाते हुए आप जो अध्ययन करेंगे उससे आपका ज्ञान सर्वोन्मुखी होगा। आपके संब्लीत की प्रष्ठभूमि उदार ओर गम्भीर बन जायेगी । हमारे यहां के अधिकांश सह्नीतकारों में यह अभाव पाया जाता है। हमारे भारतीय सन्नातकार अधिकतर अशिक्षित हैँ, वह अध्ययन की ओर से उदासीन हैं, अतएव उनका ज्ञान सीमित दायरे में रह जाता है । वे फिर सड्जीत की दोड़ सें विशेष आगे नहीं बढ़ पाते।
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