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रंगनाथ रामायण | Ranganath Ramayan PDF In Hindi

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रंगनाथ रामायण – Ranganath Ramayan Hindi Book PDF Free Download

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Ranganath Ramayan In Hindi PDF

चरित रघुनाथस्य शतकोटिप्रविस्तर । एकैकमक्षर प्रोक्त महापातकनाशनम् ॥

 रामाय रामभद्राय रामचन्द्राय वेधसे, रघुनाथाय नाथाय सीताया पतये नम 11

श्रीलक्ष्मीनाथ, दैत्य-विजयी, लोक-रक्षक, नित्य, सदानंद, मोक्षदायक, कर्म-रहित, सृष्टिस्यभूत आधार, हृदय – कमल में स्थित भक्ति रूपी आनन्द को व्यक्त करने के साधन क्रम में तत्पर भूमर – रूपी भगवान्, गजराज को मोक्ष प्रदान करनेवाले, अपने आश्रित लोक के वधु, मसार के बंधनो से मुक्ति देनेवाले, वलि को बाँधने का दृढ सकल्प करनेवाले, प्रणव-रूप.

गोपिकाओ के हृदय में विहार करनेवाले, अबोधगम्य आकारवाले, निराकार, योगियो के हृदय में ओकार रूप में वर्त्तमान, योगिसदर्शित, मोक्ष-प्रचारक, श्रुतियो के शिरोमणि, विशुद्ध-चैतन्य स्वरूप, अतिलोकवासी, समस्त लोको का आश्रय, ब्रह्माण्डरूपी मुक्ता का आयतन, नित्याचार, अखिन तत्रानीत, आदि अत-रहित, पवित्रात्मा, अविनाशी, वेद-रूपी कमल के लिए सूर्य, अक्षीण कल्याणों का आधार, निश्शक मन से सद्भक्ति तथा सेवा करनेवाले भक्तो के लिए दया- सिंधु करुणा- सिघु, बोधक, वोध्य तथा बोध– इन तीनो में व्यक्त होनेवाले पूर्ण रूप, आवितरण, ‘तत्त्वमसि’ आदि कथनानुसार भेदातीत अभेद, प्रतापी परमेश्वर का ( भक्ति-युक्त ध्यान करने के निमित)

मैने अत्यत मे के साथ नियमों का पालन किया कर्म के वचनो को ठुकराया, एकात में रहते हुए इन्द्रिय-व्यापारी को भुला दिया मुस्थिर होकर सुसम साध्य तथा परिचित आसन ( सुखासन) पर उपविष्ट हुआ मन को भक्ति रस परिपूर्ण बनावा, (शरीर के भीतर रहनेवाली) बहसर नाडियों का विचार करके उनका परिमार्जन किया, एकचित्त तथा निर्मल मन से नाडियो में अत्पत सूक्ष्म रूप से व्याप्त पवन को रोका, मनको निल बनाकर निरुद्ध प्राप वायु को मूलाधार में प्रविष्ट कराया और उसे म छह कमली को पार कराते हुए पल में पहुंचाया।

वहाँ योगीन्द्र के हृदय का भेद परखने के लिए परम योग के रूप में स्थित अनादि ब्रह्म-स्वरूपा, अत्यंत सूक्ष्म तथा निर्मल नात्री को यूप, अमन को यम-यम्, निष्ठानुरक्ति को वेदी, समस्त इन्द्रियो को काठ, शाम को अ अग्नि तथा आयोग को यज्ञ फल के रूप में मानते हुए इच्छित आनद प्राप्ति के हेतु कर्म के द्वारा प्राप्त होने वाले मोक्ष रूपी परमेश्वर अगोचर कर्म-रहित हमारे देव, मननवाले, हमारे पालनहार, भक्ति, स्तुति, प्रार्थना एवं वंदना को कर मीहार, गोक्षीर तथा तारको के सदृश उज्ज्वल मारवा देत्री की उपासना की चा रामायण- प प के जन्मस्थान के रूप में विलसित होनेवाले वाल्मीकि का स्मरण किया |

भारत-रूपी मतरी के पारिजात, तस्त्ववेत्ता परावरपुर का स्मरण किया और उनके पुत्र शुकदेव की ही भक्ति से स्तुति करने के पश्चात् में अपने मन में एक ऐसे ग्रन्थ की रचना करने का विचार करने लगा, जिसकी कला के कपन से सभी सज्जन मेरा कीर्त्ति गान करेंगे, जिसकी कदा का वर्णन करने से मेरे इहलोक और परलोक दोनों सफल होगे और जिस या के सेता सिद्ध होगे और साथ-ही-साथ पुष्प की प्राप्ति होगी ।

गर्व केट में राजा-रूपी भुमरी के लिए की कीर्ति बने हुए नव,आदि नारायण तथा अलि लोका की अपने मन की इच्छा पूर्ण करने के निमित्त हार ग्रन्थ रचना का कारण को धो दिया था समस्त प्राणी, विस पुण्यात्मा की प्रशसा बड़े आदर से करते है, जो सदा- चार के पुण्य फलस्वरूप सूर्य के समान उदित होकर कलिकाल का अवकार दूर करते थे, जो धर्म का महत्त्व जानते थे.

जिनके पवित्र तेज के समान रूपी नक्षवो के प्रकाममद जाते थे, जिन्होने अपने को दीप्ति-स्वी गंगा-अवाह में अन्य राजाओ असमान बाली, मत्यनिष्ठ सरणार्थी आधार या ऐसे कोनका भूपति के दम विनय, दया के आगार महाराजा के पुत्र गोगनरेन्द्र महान उनके पी बुद्ध भूपाल अभग, अप्रतिम विक्रमी, कुल-गोत्र के के समान वैभवाली पीर और विख्यात थे।

उनके पुत्र अक्षीण दाक्षिष्य- पनी (अक्ष कृपावाले) नाय में कुबेर मर्म में धर्मराज ( युधिष्ठिर) के समान यी शत्रुओं के लिए अति मचान् वामदेव प्रतापी तथा पवित्रात्मा में (जिनका कर-कमल) कमी और रम-विशारद ये कामियों के लिए कामदेव, दीपकमान दोन-कार्त्तिकेय, शुभम, मे चदन, मदार-त्रिका- पारिजात के फलस्वरूप दीखने वाले गोवरूपी उपाधि पर भानु-सम दीप्त होनेवाले मानव-रूप.

क्षीरसागर के (उत्पन्न) चद्र सम सुशोभित अपनी कीति को दि-दिगो में व्याप्त करने वाले अपने दान-धर्म के द्वारा की प्रशसा प्राप्त करनेवाले, अपने असमान पौरूप से बडी बासानी से “जो का नाश करनेवाले, महा बलमाली एवं प्रतानी राजाओं के लिए यवपाणि सम दीखनेवाले, (पू) नृप-वन के लिए साक्षात् अग्निदेव, सत्यनिष्ठ, महाबलपाली सेनाओ कोने में मदर पर्वत की भाँति प्रचंड रूप धारण करने वाले अपने लक्ष्म-सूर्य-विय की प्रभा से प्रतापी राजा-रूप कार का गान करके अमर-वधुओं के मुख कमलो को वीरभूम से अलकृत करने वाले शत्रुओं के प्राण-रूपी अनिल का सेवन करने वाले श्रेष्ठ भुज भुजगी (सर्प रूपी भुजाली ) पर राज्य भार वहन करने वाले थे|

वे कुरु, केरल, अवती कुतल, विमष, मत्स्य, कम्य, मगध, पुलिद, सरस पाण्ड्य कोसल बीर बर की राज समाज में प्रशसा प्राप्त करनेवाले, साम-दाम-भेद आदि गोतियो में निपुण, प्रत्यीन राजाओ के समान समस्त वैभव से युक्त तथा नय विनय आदि उपायों से सुस्थिर विजय प्राप्त किये हुए, यशस्वी विठ्ठलनरेश राजानो में सर्वश, नरेशो से पूजिस सफल जगद्धित पातु पुरी एक दिन अपनी राज सभा में बैठे हुए थे।

उस समय पुराणता मार काव्य-नाटक-शिरोमणि, मित्र, मत्री, पुरोहित, जाति, पुत्र, सामत राजा और बहुत उनकी सेवा में उपस्थित थे। राजा भूलोक के देवेंद्र के समान बड़े उत्साह से रसिक जनो द्वारा भारत, रामायण आदि का पाठ सुनकर बहुत प्रसन्न हुए।सत्पात्र सिर (राजा) राम कथा से अनुरक्त हो, सभा में यो बोले- में रामायण को सुदर ढंग से कहने की कविता-शक्ति रखनेवाले कवि इस पार में कौन है ?

तब पति ने उस उदात्त यशस्वी विठ्ठलनरेश से कहा-पापरहित नीति-निष्ठ, सर्वज्ञ, अनय ि(महाराज) आपके सुपुत्र, निपुण, सर्वपुराण, सुंदर फलाओ के मर्मन, सज्जनो को आय देने में ही सुख का अनुभव करनेवाले कमिसार्वभौम कवि-कल्पतरु कवि-कुल- मौज, कवीन्द्र, शत्रु-राजाओ के लिए पाणि, शत्रु राजा पवन के लिए पाक के समान दीखनेवाले, जिनके अग में स्वर्गलोक तक प्रतिविदित है, विलोकयुम श्रेष्ठ- साधु-जन-रूपी कमलो के लिए सूर्य, पुरुषश्रेष्ठ, आपके परम भक्त मिलल शव्द, अर्थ, गुग सादि के ज्ञाता महापति, रामायण के गर्न बुन्नरे (रामायण की कथा मेलुगु में कहने की) कविता-शक्ति (काव्य रचने के लिए आप उन्हें आदेश दें।

लेखक / Writerराजा गौतबुद्ध / Raja Gautbuddh
भाषा / Languageहिन्दी / Hindi
कुल पृष्ठ / Total Pages508
PDF साइज़22.1 MB
श्रेणी / Categoryधार्मिक/ Religious
Source / Creditarchive.org

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