फलदीपिका PDF : गोपेश कुमार ओझा द्वारा मुफ्त हिंदी पीडीऍफ़ पुस्तक | Phaldipika PDF : by Gopesh Kumar Ojha Free Hindi PDF Book

फलदीपिका PDF | Phaldipika In Hindi PDF Book Free Download
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पुस्तक का नाम / Name of Book | फलदीपिका PDF / Phaldipika PDF |
लेखक / Writer | गोपेश कुमार ओझा / Gopesh Kumar Ojha |
पुस्तक की भाषा / Book by Language | हिंदी / Hindi |
पुस्तक का साइज़ / Book by Size | 30.61 MB |
कुल पृष्ठ / Total Pages | 684 |
पीडीऍफ़ श्रेणी / PDF Category | ज्योतिष / Astrology , मनोवैज्ञानिक / Psychological |
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फलदीपिका PDF | Phaldipika PDF in Hindi
फलदीपिका PDF पुस्तक का एक मशीनी अंश
१. प्रथम अध्याय : राशि भेद ।
मंगलाचरण-जन्म समय का ठीक ज्ञान-काल पुरुष के अंगों का राशिचक्र से समन्वय-राशियों के स्थान तथा स्वामी-ग्रहों की उच्च राशियाँ, परमोच्च अंश, नीच राशि तथा परम नीच अंश-मनुष्य, चतुष्यद कीट, जलूचर संजा-पृष्ठोदय, शीषोदिय उभयोदय-दिवाबली रात्रिबली-राशियों की चर आदि संज्ञा-हद्वार, बाह्य-बातु-कर,सौम्य आदि विवरण तथा दिशाएँ- किस भाव से क्या विचारता।
२. दूसरा अध्याय : ग्रह भेद ।
सूर्य, चंद्र, मंगल बुध बृहस्पति, शुक्र, शनि किन-किन के कारक होते हैं-इनसे क्या-क्या विचार करना-ग्रहों के स्वरूप, गुण, प्रकृति- ग्रहों की दिल्या-उनके बातु, स्थान, पक्षी, वक्ष-ग्रहों के नंसगिक तथा तात्कालिक मित्र, शत्रु आदि-उनके काछ, जाति गुण, ऋतु, अन्न, देश, रत्न-पापत्व और शुभत्व ।
३. तोसरा अध्याय : वर्ग विभाग ।
दववर्ग-राशि, होरा, द्रं ष्काण, पंचमांश, सप्तमांश, नवांश, दशमांश- द्वादशांश, षपोडशाॉश-षष्टिअंश-दहावर्ग चक्र-किस वर्ग से क्या विचार करना किस वर्ग का क्या महत्व है-उत्तमांश पारिजातांश आदि विचार १ ग्रहों की प्रदीप्त, सुखित, मुदित आदि संज्ञा-।
४. चौथा अध्याय : ग्रह बल।
.स्थान बल-कालबल-दिकूबल-अयन बल, युद्धबल चेष्टाबल-नं स्गिक बल-दुग्बल-भावबल-भावदिक्बल चन्द्र क्रियादि–चन्द्र क्रिया फल-चन्द्र अवस्था फल
५. पाँचवों अध्याय : कर्माजीब प्रकरण
सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुष, बृह्स्पति-शुक्र-शनि-प्रत्येक ग्रह के अनुसार जातक के काय और आजीविका, किस प्रकार तथा किस काय से होगी-इसका विचार ।
६. छुठा अध्याय : योग
पंत महापुरुष योग-रचक-भद्र-हंस-मालव्य-शश्य-चन्द्रमा के योग सुनफा, अनफा, दुरुधरा-केमद्रम-सूब के योग-वेशि वाशि-उभयचरी-अन्य योग-शुभकतेरी-पापकते री-सुशुभ-केसरी-अधम-स म-वरिष्ठ-महा भाग्य- दकट-वसुमत्-अमला-पुष्कल-शुभ माला-अशुभमाला-लक्ष्मी-यौ री-सरस्वती- श्रीकंउ-श्रीनाथ-विरचि-द्धादश भाव स्वामियों के परस्पर स्थान विनिमय से दनन््य, खल, महायोग । पर्वत-काहल-राजयोग-दशंख-संख्या योग-बल्लकी या वीणा-दाम-पाश-केटार-शूल-युग-गोल । अधियोंग चामर-धनु-शौयं-जलधि-शस्त्र-का म-आसु र-भाग्य-ख्याति-सु पा रिजात-मुसल- अवयोग-नि:स्वयोग-मृति-कुह-पामर–ह षं-दुष्कृ ति-गन रल- निर्भाग्य-दुर्यो ग- दरिद्र-विमलयोग । दुर्योग (दुसरे प्रकार का)-इन सब योगों के लक्षण और फल ।
७. सातवाँ अध्याय ; राजयोग।
स्वैराशि तथा उच्च राशिस्थित ग्रहों का फल-सुस्थान स्थित वकीग्रह-दिग्बली ग्रहों से राजयोग-वर्गोत्तम लग्ग और बन्द्र-लग्नेश से राजयोग-उच्च चन्द्रमा-अशधिवनी में शुक्रमंगल के सुस्थान से योग-धनु के पूर्वाद्ध में सू, चन्द्र-सुर्य नवांश में चन्द्र-सवनवांश स्थिति से राजयम्रेग- वर्गोत्तम चन्द्रनवम स्थान स्थित ग्रहों से राजयोग-उच्चराशि स्थित शुक्र, शनि-नीच तथा झात्र राशिस्थ ग्रह–तृतीय, षष्ठ एकादश में-पुर्ण चन्द्र वर्गोत्तम नवांश में–गुरुचन्द्र केन्द्र मेंजल चर राशि नवांश में चन्द्र-शुक्र पर गुरु की दृष्टि-बहस्पति दृष्ट बध-मित्र दृष्ट उच्च ग्रह- निज नवांश में सुयय-मीन राशि में चन्द्र-वृष में चन्द्र-चन्द्र पर गृरु, शुक्र की दृष्टि-लाभेश, धर्मश, धनेश से राजयोग-नीचभंग राजयोग ।
८. अठवाँ अध्याय : भावश्चय फल।
सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु, तथा केतु का लग्न, द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ, पंचम, पष्ठ, सप्तम, अष्टम, नवम, दद्यम,एकादश तथा द्वादश भाव में स्थित होने का पृथक-पृथक् फछ ।
६. नवाँ अध्याय : राशिफल ।
मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक घनु, मकर, कुंभ या मीन छग्त में हो या जिस राशि में चन्द्रमा हो उसका फल। उच्चरादि स्थित, स्वग॒ृही, मित्रक्षेत्री, शत्रुक्षेत्री, नीच राशि स्थित- अस्त-समराशि स्थित ग्रहों का फल-वक्री तथा वर्गोत्तम नवांश स्थित ग्रह का फल ।
१०. दसवाँ अध्याय : कलत्रभाव ।
चन्द्र या रूग्न से पांचवाँ और सांतवाँ स्थान-शुक्र से चतुथे, अष्टम द्वादश में कर ग्रह-सप्तमेंश तथा सप्तम स्थान गत ग्रहों का फल-वृश्चिक में शुक्र-पकर राशि में गुरुममीन में शनि, कके में मंगल, शझनि-मंगल या शनि के वर्ग में शुक्र-चन्द्र शुक्र यदि मंगल शनि से सप्तम हों-पत्नी संख्या–पत्नी नाश के योग-चन्द्र-शनि योग-सप्तम में शत्रक्षेत्री या नीच ग्रहटसम विषम राशि से फल में तारतम्य-द्वितीयेश, सप्तमेश और अ्ययेश-विवाह की दिशा-क्रिस दशा या अन््तदंशा में विवाह-किस दशा, अन्तदेशा में पत्नी मरण |
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