पराशर संहिता PDF : अज्ञात द्वारा मुफ्त हिंदी पीडीऍफ़ पुस्तक | Parashar Sanhita PDF : by Unknown Free Hindi PDF Book

पराशर संहिता PDF | Parashar Sanhita In Hindi PDF Book Free Download
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पुस्तक का नाम / Name of Book | पराशर संहिता PDF / Parashar Sanhita PDF |
लेखक / Writer | अज्ञात / Unknown |
पुस्तक की भाषा / Book by Language | हिंदी / Hindi |
पुस्तक का साइज़ / Book by Size | 2.94 MB |
कुल पृष्ठ / Total Pages | 62 |
पीडीऍफ़ श्रेणी / PDF Category | ज्योतिष / Astrology |
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पराशर संहिता PDF | Parashar Sanhita PDF in Hindi
पराशर संहिता PDF पुस्तक का एक मशीनी अंश
‘अथावों हिमशैलासे देवदारुवनालये ।
बालमेकासमासीनमए च्छन्नघव; पुरा ॥
सानुधाणां द्वित॑ घब्से वत्तसाने कलों घुशे ।
शाोचाचार ययावच्च वद सत्यवतीसुत ॥ २
तच्छु ला ऋषिवाक्यन्तु समिद्दासप्रकेसन्चिम: ।
प्रद्याच सच्दातिणा: सुत्स्थछितिविशारद; ॥ ३
न चाह स्वतत्तज्ञ: कर्थ घस्स वदान्य इस |
अस्ततृपितेव प्रण्य इति द्यास! सुतोइवदत ॥ 8
ततस्त ऋषब; सब्ब धम्मेतत्त्वार्थकाबिण:
ऋषि गयास॑ पुरस्कृद्य गता वदरिकाअमसमस् ॥ ५
नानाटलसमाकोण फलपुष्योपपीमितम् ।
नदोप्रसवणा[कीण पुण्यतोथरलकतम् ॥ ६ –
स्टगपचत्िगणाव्यक्व देवतावतनाष्टतम् ।
कचगन्वनंसिन्नेश्व इत्यगीतसमाझुलसू ॥ ७
तस्सिन्नुविसभासध्ये शक्तिपुत्रं पराशरमस् |
सुखातोनं मद्दात्मानं सुनिमुस्यगणाइ्तस् ॥ ८
झताझलिपुटो झूल्ला बालस्तु ऋषिसि; सच ।
ग्रदत्चियामिवाडेश स्तुतिमि: ससपूलयतु ॥ &
अधथ खन्तुछमनसा पराशरमच्दामुनि: ।
आह सुख्ागतं ब्रूद्दीद्यासीनो सनिपुद्धव:॥ १०
व्यपूख। सुखागतं ये च ऋषयच्य ससनन््तत* ।
कुशल कुशलेत्यक्षा व्यास! एच्छत्यत; घरम् ॥ १६
यदि जानासि मे भक्ति ज्तद्ादा भक्तवतृसल | हु
चस्मे कथव में तात अचुग्राह्यों छह तब ॥ १५
खझुता मे मानवा धस्सा वाखिडा: काश्यपात्तथा।
गाशगवा गीत्साच्यव तथा चोशनसा! स्छता’ ॥ १३
अत विध्णोश्य सांवता दाच्ा घआद्चिरसास्तथा।
| श्ातातपाच्च द्वारीता याज्ञवल्कप्रक्मताञ्य थे ॥ १४
कात्यावनक्नताओव प्राचेतसकृताआ ये
आपस्तखह्ता धम्म: शपझ॑स्य लिखितस्थ च ॥ १५
आता झते भववृप्रोक्ता: श्रोतार्थास्न विस्कृता; |
असि्मिन् मन्वन्तरे घम्मा। छंतत्न तादिके सगे ॥ ९६
सन्त धर्म: झते जाता, सब्बे नद्धा; कलो युगे।
चातुनण्थेसमाचारं किबल्चितु साधारण वद ॥ १७
व्यासवाब्यावसाने तु सुशिसुख्य; पराशर’ ।
घम्मेस्थ निर्णय॑ प्रा रूच्यं स्थुलच विस्तरात् ॥ १८
श्ण पुत्र प्रवच्झोप्ह श्टखन्तु ऋषयस्तथा ।
कल्प कल्प चयोत॒पत्ती ब्रह्मविस्णुमदेस्धरा; ॥ १६
अति स्छृति) सदाचारा निशयतदञात्व स्वदा।
न कश्चिददकता च वेदस्सत्ते। चतुस्म ख+
तयेव घम्म स्सरति सन) कल्पान्तरान्तरे ॥
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