नागपुरी शिष्ट साहित्य | Nagpuri Sist Sahitya PDF In Hindi

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नागपुरी शिष्ट साहित्य – Nagpuri Sist Sahitya Book PDF Free Download

Nagpuri Sist Sahitya is a term used to refer to the oral tradition and literature of the Sist people, an indigenous group that resides in the region of Nagpur, in the state of Maharashtra in India. The Sist people have a rich cultural tradition, and their literature includes a variety of forms, including folk tales, songs, and poems that are passed down orally from generation to generation. Nagpuri Sist Sahitya is an important part of the cultural heritage of the Sist people, and it is a valuable source of information about their history, beliefs, and traditions.

नागपुरी शिष्ट साहित्य / Nagpuri Sist Sahitya PDF

पहले छोटानागपुर का सपूर्ण क्षेत्र घने जगलो से परिपूर्ण था, झारखण्ड के नाम से जाना जाता था। प्राचीनकाल मे इस क्षेत्र को ये महाभारत में इसका उल्लेख कर्ण की दिग्विजय मे आया है- खगान् गगान् कलिंगाश्च शुण्डिका मिलान । मागधान् कण्डाश्च निवेश्य विपर्यऽऽत्मनः ॥ आवशीराश्ण योध्याश्च पक्षिनिर्जयत् । पूर्वी दिश विनिर्जेश्य वत्सभूमिं तथागतम् ॥’ फलस्वरूप यह खण्ड कहते

इस क्षेत्र को घर्कखण्ड भी कहा जाता था, क्योकि धर्क रेखा (सूर्य रेखा) रांची से होकर गुजरती है। “बाइन-ए-अकबरी” तथा “जहाँगीरनामा” मे इस भू-खण्ड को फोकरा” कहा गया है। “जहांगीरनामा” के धनुसार यहाँ बहुमूल्य हीरे प्राप्त होते थे सभवत इसी कारण इसका एक नाम हीरानागपुर भी है। पर इसका सर्वाधिक प्रचलित नाम “नागपुर” रहा है।

इस नामकरण के दो ग्राधार है। (१) यहाँ के जंगलों में कीमती हाथी पाये जाते थे, फलत इसका नाम नागपुर पडा । यहाँ प्राप्त होनेवाले हाथी इतने विख्यात हुआ करते थे कि “श्यामचन्द्र” नामक हाथी को प्राप्त करने के लिए शेरशाह ने यहाँ के तत्कालीन राजा पर आक्रमण के निमित्त अपनी सेना सन् १५१० ई० में भेजी थी। यहाँ के जगलो से प्राप्त होनेवाले हाथियों की ख्याति का उल्लेख “प्राइन-ए-मकबरी” मे भी मिलता है।

(२) प्राचीन- काल से ही छोटानागपुर के ऊपर नागवजी राजाओं का प्रभुत्व रहा है, अत इम क्षेत्र का नागपुर के नाम से अभिज्ञात होना स्वाभाविक ही है। सन् १७९२ ई० मे इसका नाम “बूटियानायपुर” रखा गया, क्योंकि महाराष्ट्र के नागपुर तथा इस नागपुर के बीच अन्तर स्पष्ट करना प्रशासनिक दृष्टि ने अपरिहार्य हो गया था। चुटिया ग्राम भी रांची जिले के अन्तर्गत एक कन्वा है, जहाँ पहले का निवास था पेज “चुटिया” शब्द का ठीक-ठीक उच्चारण नहीं कर पाते थे, फलत कालान्तर मे चुटियानागपुर ” धान का छोटानागपुर ” छोटानागपुर बिहार का एक प्रमुख प्रमंडल है, जिसके पांच जिले पलामू, सिंहभूम तथा धनवाद हैं।

नागवशी लोगो बन गया। सम्प्रति रांची, हजारीबाग, छोटानागपुर के प्रादिनिवासी यसुर माने जाते हैं। इस जाति के लोग भाग यहाँ बाहर से भी छोटानागपुर मे पाये जाते हैं, जो लोहा गलाने का काम करते हैं। झानेवाली घादिम जातियो मे मुडा, उराँव तया खटिया हैं पर इनके आगमन कालक्रम तथा मूल स्थान के सम्बन्ध मे निश्चय-पूर्वक कुछ नहीं कहा जा सकता इन प्रदेश मे पुरातत्व विभाग की धौर से लोग नही के बराबर हुई है, फिर भी उपलब्ध सामग्रियों के धाधार पर यह कहा जा सकता है कि यहां मनुष्य अनादि काल से रहते मा रहे हैं।

प्राचीन छोटानागपुर भारखण्ड के नाम से जाना जाता था और ऐसा माना जाता है कि इस क्षेत्र के लोगो पर उस समय बाहरी राजाओ का कोई प्रत्यक्ष प्रभाव नहीं था महाभारत काल मे राजगृह के शक्ति सम्पन्न राजा जरामन्ध ने भी इस क्षेत्र पर विशेष ध्यान नही रखा था। मगव के महापद्गनद उपसेन ने उडीसा तक के क्षेत्र पर अधिकार प्राप्त किया था, घत ऐसा समय है कि उसने भारखण्ड को श्री अधिकृत किया हो मगध साम्राज्य में इस क्षेत्र को कदाचित् पहली बार अशोक के राज्य-काल (२०३-२३२ ई० पू० ) मे सम्मिलित किया गया था।

मौर्य साम्राज्य के पतन पर कलिंग के राजा सारखेस ने भारलण्ड के क्षेत्र से होकर राजगद्द तथा पाटलिपुत्र को पराभूत किया था। समुद्रगुप्त (सन् ३३१-१५० ई०) ने दक्षिण पर आक्रमण के समय भारखण्ड को भी पार किया था। चीनी यात्री इल्लिंग के सम्बन्ध मैं यह कहा जाता है कि झारखण्ड से होकर ही वह नालन्दा तथा श्रीमदया पहुँचा था

प्रथम नागवंशी राजा फणिमुकुट राय हुए इस सम्बन्ध मे निम्नलिखित किंवदन्ती प्रचलित है- जनमेजय के नागयज्ञ मे पुण्डरीक नामक नाग जलना नही चाहता था, भत मनुष्य का रूप धारण कर वह काशी भाग आया। यहाँ एक ब्राह्मण का वह शिष्य बन गया और उनके घर पर रहकर अध्ययन करने लगा।

पुण्डरीक की कुशाग्र प्रतिमा से प्रभावित होकर ब्राह्मण ने अपनी कन्या पार्वती का विवाह उसके साथ कर दिया। पुण्डरीक जब सोता था तो उसकी जीभ बाहर निकल भाती थी, जो दो हिस्सो मे विभक्त थी। उसके मुँह से जहरीली सांस निकला करती थी, जिससे पार्वती बेचैन हो जाया करती । वह अपने पति से इसका कारण बराबर पूछती पर पुण्डरीक कुछ भी नहीं बताता ।

एक बार दोनो दक्षिण के तीर्थो की यात्रा पर निकले। पुरी से लौटते हुए ये लोग सुतियाम्बे (पिठौरिया के समीप पहुंचे। उन दिनो पार्वती गर्भवती थी। उसे असा प्रसव पीडा होने लगी। उसने सोचा कि अब वह जीवित नहीं बच पाएगी, अत क्यो नही अपने पति से दो जीभो का रहस्य अभी ही पूछ लिया जाय। पूछने पर पुण्डरीक ने पार्वती को सच्ची बात बतला दी कि वह मनुष्य नही नाग है।

यह बतलाकर यह सुतियाम्बे के वह मे समा गया। पार्वती ने पुत्ररत्न को जन्म दिया। इसके बाद लकडियाँ चुनकर उसने आग जलाई और उस आग मे बह जल मरी । तदुपरात पुण्डरीक नागदह से निकल माया और यह नवजात पुत्रं को रक्षा अपना फण फैलाकर करने लगा ।

कुछ सकडहारो ने इस दृश्य को देखा और इसकी सूचना पड़ोस के एक दूबे नामक ब्राह्मण को दी। दूवे नवजात शिशु को लेकर घर चला आया। उसने उसका पालन-पोषण किया और उसका नामकरण फणिमुकुट राव किया, क्योंकि वह नाग के फण के नीचे पाया गया था।

इस किवदन्ती का दूसरा रूप यह भी है कि दूबे ने प्रधान मानकी मदरा मुडा नामक व्यक्ति को यह बच्चा सोप दिया, जिसने अपने बेटे के साथ-साथ फणिमुकुट राय का भी लालन-पालन किया। जब वारह वर्ष व्यतीत हो गए, तो मदरा मुडा ने देखा कि उसके अपने पुत्र की तुलना मे फणिमुकुट राय कहीं अधिक योग्य एव प्रतिभाशाली था अत उसने फणिमुकुट राय को ही अपना उत्तराधिकारी घोषित किया।

धन्य मानकियो तथा परहा राजानो ने भी एकमत होकर फणिमुकुट राय को अपना राजा स्वीकार कर लिया। ऐसा माना जाता है कि यह घटना मवत् १२१ अथवा सन् ६४ ई० की है। यहाँ से नागवशी राज्य का ( पर शरतचन्द्र राय के अनुसार यह घटना श्वी शताब्दी की है।) प्रारम्भ होता है।

लेखक / Writerश्रवण कुमार गोस्वामी / Shravan Kumar Goswami
भाषा / Languageहिन्दी / Hindi
कुल पृष्ठ / Total Pages156
PDF साइज़3.2 MB
श्रेणी / CategoryHistory
Source / Creditarchive.org

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