मानव शरीर रचना विज्ञान | Manav Sharir Rachana Vigyan PDF in Hindi
मानव शरीर रचना विज्ञान | Manav Sharir Rachana Vigyan Book PDF in Hindi Free Download

लेखक / Writer | डॉ. मुकुंद स्वरुप वर्मा / Dr Mukund Swarup Verma |
पुस्तक का नाम / Name of Book | मानव शरीर रचना विज्ञान / Manav Sharir Rachana Vigyan |
पुस्तक की भाषा / Book of Language | हिंदी / Hindi |
पुस्तक का साइज़ / Book Size | 15.92 MB |
कुल पृष्ठ / Total Pages | 283 |
श्रेणी / Category | स्वास्थ्य / Health |
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मानव शरीर रचना विज्ञान पुस्तक का एक मशीनी अंश
शरौर-स्चना-विज्ञान आधुनिक चिकित्ा-प्रणाली को एक अत्यन्त मह्तपूर्ण शाला है। वास्तव में रोग-चिकिता का आधार ही अज्ञों की रचना तथा उनके कार्य का पूर्ण ज्ञान है। रचना तथा कार्य से अमिश न होने पर चिकित्सा में निषुणता नहीं श्रा सकती। विशेष कर शल्य-चिक्रिसा करनेवाले शह्य- कोविदों के लिए. तो शरीर-रचना का अत्यन्त गम्भीर और यूद्ठम ज्ञान अनिवार्य है।
शरीर का प्रत्येक अछ्छ तथा रचनाएँ, धमनी, शिरा, नाड़ी इत्यादि की स्थिति तथा उनका श्रापस में स्थिति के अनुसार उख्बस्धतथा अन्य सप्रीपकर्ती श्रद्ों के साथ सम्रन्ध, इन सबका पूर्ण परिचय हुए भिना शत्र कर्म नहीं किये जा सकते । बृहद् शल्य-कम में ऐसी अनेक सचनाएँ, घमनी, नाढ़ी तथा अन्य अंग बीच में आ जाते हैं कि वह निर्दिष्ट स्थान तक पहुँचने में ब्राधित होते हैं ।
इन सब्र रचमाश्रों तथा अंगों को इस प्रकार बचाना तथा उनकी व्यवस्था करनी कि उनको कोई क्षति भी ने पहुँचे तथा इच्छित स्थान तक पहुँचकर शब्य, अबुंद तथा रुूण अंग का छेटन भी किया जा सके इसीकों शत्म कर्म कहते हैं तथा शल्य कोव्िद वी सफलता इसी पर निर्भर होती है। स्वनाओं तथा अंगें को जितनी कम ज्ञति पहुँचेगी शत्र-कर्म में उतनी ही सफलता होगी |
भायुवंद मैं शरीसस्थान को बड़ा महत्व दिया गया है। प्रत्येक प्राचीन संहिता मैं इसका विशेष स्थान है। ओर यथपि अनेक तंहिताएं लुप्त हो गई हैं तथा जो मिलती हैं उनमें ते कुछ अ्पूर्ण है ओर शेष में श्रशानवश असक्भत श्लोकी का समावेश हो गया है तो मी उनके श्रव्यथन से स्पध्तया विदित होता है कि कुछ संहिताएँ केवल शारीर-शाल्न ही से सम्बन्ध रखती थीं।
उनमें शरीर के प्रत्येक श्रद् की रचना का सूद्मतर विवेचन किया गया था तथा शबच्छेद की विधि का पूर्ण वर्णन था। प्रचीन तम्मय में शल्य-कोविदों तथा शत्र-चिकित्सकों की श्रेणी ही (थक थी। श्र उन छोगों को इन शारीर समत्रस्धी संहिताओं का अध्ययन आवश्यक था |
नो आयुर्वेदीय संहिताएँ, इस समय उपलब्ध है उनमें चरक ओर सुश्रत ही प्राचीनतम और महत्व पूर्ण मानी जाती हैं। इनमें मी शारीर के समरन्ध में सुश्रुत ही प्रमाणिक अन्य है। श्न-चिकित्सा तथा शारीर का विशेष विवेचन इसी उंहिता में किया गया है। किन्तु उसमें भी बहुत से ऐसे अ्रसड्भत पाठ मिलते हैं जो शबच्छेद करने पर यथा नहीं प्रतीत होते । उनमें जो वर्णन है, मानव शरीर में उतके अनुसार ने अज्ञों की रचना ही पाई जाती है और न प्रयोगों द्वारा उनका वह कार्य ही सिद्ध होता है। कहीँ-कहीं तो पाठ अंदयन्त दृषित हो गया है।
इस सबका कारण यह हुआ है कि इन संहिताओं का पंशोधन तथ। संस्करण उन चक्तियों के द्वारा होता रहा है जो स्वयं इस विषय के विश्व नहीं थे ओर शारीर-शास्र का जिनको परिचय नहीं था|
अतएव जहाँ प्र भी जो पाठ उनको समझ में नहीं आया वहीं पर उन्होंने पाठ का रूपान्तर कर दिया ओर अपनी श्रोर से कुछ शलोकों का समावेश कर दिया। यही क्रम शताब्दियों तक चलता रहा। परिणाम कह हुआ कि पार का झुप बिल्कुल बदल गया और जो संगत था वह अरसज्ूत हो गया |
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