कायाचिकित्सा PDF : गंगा सहाय पाण्डेय द्वारा मुफ्त हिंदी पीडीऍफ़ पुस्तक | Kayachikitsa PDF : by Ganag Sahay Pandey Free Hindi PDF Book

कायाचिकित्सा PDF | Kayachikitsa In Hindi PDF Book Free Download
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पुस्तक का नाम / Name of Book | कायाचिकित्सा PDF / Kayachikitsa PDF |
लेखक / Writer | गंगा सहाय पाण्डेय / Ganag Sahay Pandey |
पुस्तक की भाषा / Book by Language | हिंदी / Hindi |
पुस्तक का साइज़ / Book by Size | 2 MB |
कुल पृष्ठ / Total Pages | 638 |
पीडीऍफ़ श्रेणी / PDF Category | स्वास्थ्य / Health , आयुर्वेद / Ayurveda |
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कायाचिकित्सा PDF | Kayachikitsa PDF in Hindi
कायाचिकित्सा PDF पुस्तक का एक मशीनी अंश
चिकित्सा-विज्ञान की ज़िक्षा ग्राप्त करने के बाद भी प्रत्यक्ष कर्माभ्यास्के समय, नवीन चिकित्सकों को अप्रत्याशित कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। चिकित्सा-शात्र यें वर्णित व्याधियों के स्वरूप या उनमें निर्दिष्ट प्रतिकर्म-व्यवस्था से अभिन्न चिकित्सक भी आतुरोपक्रम में उपलब्ध विचित्र परिस्थितियों से किंकत्तव्य-विमढ़-सा हो जाता है।
इसी परिस्थिति को स्पष्ट करने के लिए प्राचीन आचार्यों ने ‘उत्पद्यते तु साउकस्था देशकाल- बल ग्रात | यस्यां कार्यमकार्य स्थात्-‘” इस पत्र का निर्देश किया है। अस्तुत काय-चिकित्सा में चिकित्सा के सेद्धान्तिक पक्ष का स्पष्टीकरण: एवं चिकित्सा के विभिन्ष उपक्रमों का व्यावहारिक स्वरूप देने के अतिरिक्त व्याधि की विभित्र अवस्थाओं के उपचार-कम का विशद विवेचनःकिया गया है। रोगविनिश्रय के ग्राच्य एवं पाश्चात्त्य सिद्धान्त समन्वित-रूप में संग्रहीत किये गये हैं। पाश्चात्त्य चिकित्सा-विज्ञान में, पिछले कुछ दशकों में, अनेक विशाल-क्षेत्रक औषध-द्रग्यों का समावेश हुआ है | प्रायः उन समस्त व्यापक्ग्रभाववाली विशिष्ट ओषधियों का गुण-धर्म एवं उनके.ग्रयोगक्रम का आवश्यक स्पष्टीकरण किया गया है |
इस पुस्तक में ग्राच्य एवं पाश्चात््य चिकित्सा का समन्वयात्मक निर्देश किया गया है। प्रत्यक्षकमाम्यास के समय ज़िस क्षेत्र की उपयोगिता का परिचय लेखक को मिला है, ईमानदारी के साथ उन आशु-फलग्रद’ व्यवस्थाओं का संग्रह इसमें किया गया है। आयुर्वेदीय या ग्राच्य चिकित्सा-शासत्र की उपयोगिता, नवीन चिकित्सा-विज्ञान के अनेक चमत्कारिक आविष्कारों के बावजूद, घटी नहीं है |
प्राच्यचिकित्सा का सुकर-निदान एवं व्यक्तिगत-विविधाओं के आधार पर निर्दिष्ट उपचार-क्रम, पथ्य तथा अनुपान आदि की व्यवस्था की विशिष्ट उपादेयता, सभी चिहक्नित्सक अन्तर्मन से अवश्य स्वीकार करते हैं। विश्वास है प्रगतिशील वर्त्तमान काल में, शनेः झनेः समस्त तथाकथितः विरोध तिरोहित हो जायँगे और आत्तमानव की सेवा में समन्वित जझक्ति का श्रद्धा एवं विश्वास के साथ प्रयोग किया जा सकेया, तभी क्रान्तदर्शी महाकवि का यह वाक्य पुराण- मित्येव ने साधु से, न चापि काव्य नयमित्यवद्यम् | सन्तः परीक्ष्यान्यतरद् भजन्ते* ‘**? वास्तविक रूए में चरितार्थ होगा ।
कायचिकित्सा के अल्तृत संस्करण में विश्वि्ठ संक्रायक्र व्याधियों का विस्तृत क्रिया-क्रम दिया यय है। अविशज्विप्ट वर्य की तथा लाक्षणिक ग्रधानंतावाली शेष व्याधियों का अन्तमाव छाक्षणिकर चिकित्सा! नामक यन्य में किया यया है, जो शीज ही प्रक्मशित होगा | ‘आपत्कालीन-चिकित्सा! नामक एक तीसरा ग्न््ध भी छपने जा रहा हैं, जिसमें आकस्मिकरूप में उत्तत्र होनेवाली यंभीर अवस्थाओं एवं व्यापत्तियों का चिक्रित्सा-विधान विस्तारए्4क क्रियात्मक्न कठिनाइयों के समाधान के साथ वर्णित किया गया है। विश्वास हैं, भगवान् विश्वनाथ की कृपा से उक्त अंथों को भी क्रमश: ग्रस्तुत कर सकने का सोभाग्य ग्राप्त होगा |
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