ईशीभाष्यम् सुत्तम् ( ऋषिभाषित सूत्र ) : महोपाध्यय विनयसागर द्वारा मुफ्त हिंदी पीडीऍफ़ पुस्तक | Isibhashayam Suttam (Rishibhashit Sutra ) : by Mahopadhyaya Vinayasagar Free Hindi PDF Book
ईशीभाष्यम् सुत्तम् ( ऋषिभाषित सूत्र ) : महोपाध्यय विनयसागर द्वारा मुफ्त हिंदी पीडीऍफ़ पुस्तक | Isibhashayam Suttam (Rishibhashit Sutra ) : by Mahopadhyaya Vinayasagar Free Hindi PDF Book

लेखक / Writer | महोपाध्यय विनयसागर / Mahopadhyaya Vinayasagar |
पुस्तक का नाम / Name of Book | ईशीभाष्यम् सुत्तम् ( ऋषिभाषित सूत्र ) / Isibhashayam Suttam (Rishibhashit Sutra ) Hindi Book in PDF |
पुस्तक की भाषा / Isibhashayam Suttam Book Language | हिंदी / Hindi |
पुस्तक का साइज़ / Book Size | 20 MB |
कुल पृष्ठ / Total Pages | 156 |
श्रेणी / Category | धार्मिक / Religious , दार्शनिक / Philosophical , पौराणिक / Mythological , हिंदू / Hinduism |
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डिप्रेशन से बचाती और उम्मीद जगाती हैं किताब
कहीं न कहीं आपने यह पढ़ा या सुना जरूर होगा कि किताबें हमारी अच्छी दोस्त होती हैं | विज्ञानियों का कहना है कि किताब पढ़ने से न केवल हमारा ज्ञान बढ़ता है बल्कि यह हमारे मूड को रिप्रेश करने का भी काम करती है | अमेरिका की पीटरसबर्ग यूनिवर्सिटी में हुए एक अध्ययन के मुताबिक जो लोग किताबें पढ़ने में अधिक समय व्यतीत करते है उन्हें डिप्रेशन होने का खतरा कम हो जाता है |
“ सभी जीवों के प्रति दयावान बनो।”
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पुस्तक का विवरण –
यह ग्रन्थ श्रपनी भाषा, छन्द-योजना श्रौर विषय वस्तु की दृष्टि से अर्धभागधी जैन आागम ग्रन्थों मे अतिप्राचीन है| मेरी दृष्टि मे यह ग्रन्थ आचाराग के प्रथम श्रुतस्कन्ध से किचित् परवर्ती तथा सूत्रकृताग, उत्तराध्ययन एवं दशवेकालिक जैसे प्राचीन आगम प्रन्थों की श्रपेक्षा पूर्ववर्ती सिद्ध होता है। मेरी दृष्टि मे इसका वर्तमान स्वरूप भी किसी भी स्थिति मे ईसवी पूर्व तीसरी-चौथी शताब्दी से परवर्ती सिद्ध नही होता है। स्थानाग मे प्राप्त सूचना के अनुसार यह ग्रन्थ प्रारम्भ में प्रश्नव्याकरणदशा का एक भाग था, स्थानाग मे प्रइनव्याकरण दशा की जो दस दशाए वणित हैं, उसमे ऋषिभाषित का भी उल्लेख है । समवायाग इसके ४४ अध्ययन होने की भी सूचना देता है । श्रत यह इनका पूर्वेवर्ती तो अवश्य ही है। सूत्रकृताग मे नमि, बाहुक, रामपुत्त, असित देवल, हपायन, पराशर आदि ऋषियो का एवं उनकी आचारगत मान्यताश्रो का किचित् निर्देश है । इन्हे तपोधन और महापुरुष कहा गया है | उसमे कहा गया है कि पूव ऋषि इस (आहत प्रवचन ) में 'सम्मत' माने गये हैं | इन्होने (सचित्त) बीज और पानो का सेवन करके भी मोक्ष प्राप्त किया था* । अत पहला प्रश्न यही उठता ह कि इन्हे सम्मानित रूप में जेन परम्परा में सूत्रकृतांग के पहले किस ग्रन्थ मे स्वीकार किया गया है ? मेरी दृष्टि मे केवल ऋषिभाषित ही एक ऐसा ग्रन्थ है, जिसमे इन्हे सम्मानित रूप से स्वीकार किया गया है। सूत्रकृताग की गाथा का 'इह-सम्मता' शब्द स्वय सूत्रकृताग की अपेक्षा ऋषिभाषित के पूर्व अस्तित्व की सूचना देता है ।
महोपाध्यय विनयसागर द्वारा
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