होमियोपैथिक पारिवारिक चिकित्सा | Homeopathic Parivarik Chikitsa PDF in Hindi
होमियोपैथिक पारिवारिक चिकित्सा | Homeopathic Parivarik Chikitsa Book PDF in Hindi Free Download

लेखक / Writer | एम. भट्टाचार्य / M. Bhattacharya |
पुस्तक का नाम / Name of Book | होमियोपैथिक पारिवारिक चिकित्सा / Homeopathic Parivarik Chikitsa |
पुस्तक की भाषा / Book of Language | हिंदी / Hindi |
पुस्तक का साइज़ / Book Size | 37.85 MB |
कुल पृष्ठ / Total Pages | 1328 |
श्रेणी / Category | स्वास्थ्य / Health , आयुर्वेद / Ayurveda |
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Homeopathic Parivarik Chikitsa PDF
होमियोपैथिक पारिवारिक चिकित्सा पुस्तक का एक मशीनी अंश
शरीर-विज्ञानके सम्यन्धमोें सक्षेपसं बताया जा चुका । अब हम मानव-अगो के कार्य-क्लाप तथा क्रियाके सम्बन्ध बवायेंगे छर्थावेसास्थ्य पर किस अग का कैसा प्रभाव पहुँचता है और कौन अग क्या काम करते हैं |
मानव-शरीरकी रचना कोष या सेलो” से ही पहले आरस्भ होती है। यह कोप एसी चीज है, जो केबल आँखोंसे दिखाई नही देती | सेलोंगें एक प्राचीर ( फथे। )
रहता है, जिसके वीचो बीच र्में मीगी रहती है। जो सेलॉके कार्यो पर शासन करती है) सेल या कोप तयतक जीवित रहते हैं, जबठक उन्हें खाद्य रूपगें तरी ( पानी ), गर्मी और अम्नजान मिलता रहता है।
गर्मी, यूखना, खायका न् प्राए होना या अम्शजानका न मिलना ही सेलोकी मृत्युका कारण होता है। स्दीये में भरती नहीं हैं, पर घनकी कार्य-शक्ति रुक जाती है। मानव शपसीर के ये कोष जहाँ पेंदा होते हैं, विशेषकर ये वहीं रहते हैं। समय पाकर ये पुराने पड जाते हैं और क्षय हो जाते हैं अथवा इनसे दो नये कोप बन जाते हैं। वेनों या कोघोका परिवत्तन या पुर्ना्नि्माण तीन तरह से होता है
पहला थर्थाव पूरानी सेलमें एक काली-सी पैदा हो जाती है, यह वढती है और बदते-यछते पुरानी सेलसे अलग हो पटती है। इस तरह दो सेल या कोप बने ! पहला वो एक रह गया और दूसरा नया निकल आया । इनको बृद्धिका दूसरा क्रम सरल-विभाजन है अर्थात् एक सेल बढकर दो हो जाती है।
दो से चार इसी तरह बढ़ती जाती है और तीसरा क्रम यह है कि भीगी या अणु कीप में ही विभाग हाता जाता है ओर नयी वनाजटें भी पेदा हाती जाती हैं। जय मौंगी दो होती हैं
शरीर के जिस अंश के जो कोप हैं, वे वहीं रहते हैं; पर उस अंग की आवश्यकता के अनुसार सेलॉ में परिवर्तन या सुधार होता है। उनकी या बनावट इस तरह की होती है कि उनका पहचानना कठिन हो जाता है। जेसा नाखून में वे सौंग की तरह दीले वनाती हैं। वायुनली में केश- भरे उभार बनते हैं।
मांस-पेशियोंके कोप टेढ़े-मेढ़ें और लम्बे होते हैं । अंडकोष में इनमें पँछे होती हैं। पेट्में वे सफेद प्याले या गिलास-जेसी शकल के होते हैं। सारांश यह है कि इन सेलों की वनावट भिन्न-भिन्न प्रकारकी, स्थान तथा अवश्यकता के अनुसार होती है ; शरीरमें सेल एकत्र होकर तस्तु बनाती हैं, जिनसे एक विशेष प्रकारका कार्य होता है। इसी तरह अस्थि-तन्तु, स्नायू-तन्तु, पेशी-तन्तु आदि तेबार होते हैं। इन तन्तुओं से ही शरीर के उपादान तेयार होते हैं । –
पाउन-संस्थान की क्रिया–पाचनका मतलब है, ऐसा खाद्य पदार्थ तेयार करना, जो सोख लिया जा सके और इस तरह रस पचकर रत्त में मिल्ल सके । इस तरह पचने में तीन क्रियाएँ होती हैं–प्रदार्थो का तरल या रस बनना । इसका अशोषण या सोखना तथा पक्कीकरण या अन्य पदार्थसे मिल जाना । अशोषण के योग्य उपयुक्त भोजन बनाने के लिये, इसे काटना या चटनीकी तरह वना डालना जरूरी होता है तथा इसमें कुछ ऐसे भी रसायनिक पदार्थ मिलनेकी जरूरत रहती है, जिनसे उनके रुपमें ऐसा परिवत्तंन हो जाये, कि वे सहजमें ही उन अन्तवाली कोमल इलेष्पिक-झिल्लियों से अशोषित या चूस लिये जा सके ।
हम लोीग जो कुछ भोजन करते हैं, वे साधारणतः निम्नलिखित कई भंगों में विभक्त किये जा सकते हैं :—
१ प्रोटीड—इनमें’ मास, दूध, अण्डे, मछली, दाल, मटर, दही, छाना मैदा, ऑँटा, प्रभृति हैं इनसे शरीरमें मांस तेयार होता है ।
२ कार्वों हाइड्रे दूस था खेतसार या चीनी–इनमें चावल, गेहूँ, मकई, आटा, तरकाग्याँ, फल, आदर, कन्द, सागृ, बालीं, आराख्ट,चीनी, शक्कर, अचार प्रभृति हैं
३ चर्बी ( हाइड्रोनकार्बोन्स १–इसमें’मक्खन, घी, सेल प्रभृति हैं। इनसे शरीर में गर्मी और शक्ति प्राएं होती हैं ।
४ नमक–दनमैँ प्रघान है, साघारण नमक ,कलेसियम नमक, फास्फैद्स प्रभृत्ति ।
५, प्रानी–यह भोजन और प्राण-घारक दोनों ही कार्योके लिये है । इसके अलावा एक चीज और है जिसे :–
६ खाद्योज ( शांत ) कहते हैं, जिसका खाद-पदार्थमें रहना खास्थ्य मद है और जो भोजन के यदाथों में न रहने पर रोग क्या मृत्यु हो जाती है। चाहे आप कितना ही खाते जायें, यदि यह न रहेगा त्ञो आपका शरीर पृष्ट न होगा। विठामिन या खांदौज वाजे फल तथा रसोमें पाया जाता है !
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