हजारी प्रसाद दिवेदी ग्रन्थावली भाग 8 : डॉ मुकुन्द द्विवेदी द्वारा मुफ्त हिंदी पीडीऍफ़ पुस्तक | Hazari Prasad Dwivedi Granthavali Part 8 : by Mukund Dwivedi Free Hindi PDF Book
हजारी प्रसाद दिवेदी ग्रन्थावली भाग 8 : डॉ मुकुन्द द्विवेदी द्वारा मुफ्त हिंदी पीडीऍफ़ पुस्तक | Hazari Prasad Dwivedi Granthavali Part 8 : by Mukund Dwivedi Free Hindi PDF Book

लेखक / Writer | डॉ मुकुन्द द्विवेदी / Mukund Dwivedi |
Hazari Prasad Dwivedi Granthavali Part 8 Book Language | हिंदी / Hindi |
पुस्तक का साइज़ / Book Size | 11.01 MB |
कुल पृष्ठ / Total Pages | 480 |
श्रेणी / Category | साहित्य / Literature |
कहानी बहुत पुरानी है । किंतु बार बार नए सिरे से कही जाती है । अतः एक बार फिर दुहराने में कोई नुकसान नहीं हैएक यक्ष था, अलकापुरी का निवासी ।इस देश और इस काल के निवासियों की दृष्टि से देखा जाय तो वह निहायत गरीब नही कहा जा सकता ।दूर से ही उसके विशाल महल का तोरण इन्द्रधनुष के समान झलमाया करता था ।मकान की सीमा में ही जो मनोहर बापी उसमे बनवायी थी उसकी सीढिया मरकत मणि की शिलाओं से बांधी गयी थी और उसके भीतर वेंदुर्य मणि के स्निग्ध -चिकने -नालो पर मनोहर स्वर्ण -कमल खिले रहते थे ।
इस बापी के निकट ही इंद्रनील मणियो से बना हुआ कीढा -पर्वत था, जिसके चारों ओर कनक -कडली का बेड़ा लगा था। एक माधवी -मंडल का कीड़ानिकुंज था,जिनके ठीक मध्य में स्फटिक मणि की चौकी पर कांचनी वासयष्टि थी,जिस पर उस यक्ष का शौकीन पालतू मयूर बैठा करता था -शौकीन इसलिये की यक्षप्रिय की चूड़ियां की झंकार से ही नाच लेने में उसे रस मिलता था। गरज की मकान की शान देखकर कोई नही कह सकता था कि वह गरीब था ।उसके बहरी द्वार के शाखा स्तंभों पर पथ और शंख थे, जिसके मतलब कुछ विद्वान यह बताते है की शंख और पद्य तक कि संपत्ति उसके पास थी और कुछ विद्धान इसे उन दिनों के पैमेवालो की महत्वाकांक्षा का चिन्ह -मात्र मानते है।
जो भी हो यक्ष बहूत गरीब नही था ।कल्पवृक्ष के पास रहनेवालो को धन की क्या कमी हो सकती है भला! परन्तु निर्धन चाहे न हो ,नौकरीपेशा आदमी वह जरूर था।वह तो नही मालूम की वह क्या काम करता था;मगर मेघदूत के टोककारो ने जो अनुमान भिड़ाये है,उन से यही पता लगता है की यह कोई बहुत ऊँचे ओहदे का आदमी नही या।कुछ लोग बताते है की यक्षपति कुबेर का माली था।
डॉ मुकुन्द द्विवेदी
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