गीता प्रवचन | Gita Pravachan PDF In Hindi
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गीता प्रवचन – Gita Pravachan Book PDF Free Download

गीता प्रवचन विनोबा / Gita Pravachan Vinoba Hindi PDF
1. आजसे मैं श्रीमद्धभगवद्गीता के विषय में कहने वाला हूँ। गीताका और मेरा संबंध तर्क से परे है| मेरा शरीर माँ के दूध पर जितना पता है, उससे कहीं अधिक मेरे हृदय और बुद्धि का पोषण गीता के दूध पर हुआ है जहाँ हार्दिक संबंध होता है, वहाँ तर्क की गुंजाइश नहीं रहती ।
तर्क को काटकर श्रद्धा और प्रयोग, इन दो पंखों से ही में गीता गगन में यथा शक्ति उडान भरता रहता हूँ। मैं प्रायः गीता के ही वातावरण में रहता हूँ | गीता मेरा प्राण तत्त्व है। जब में गीता के संबंध में किसी से बात करता हूँ, तब गीता-सागर पर तैरता हूँ और जब अकेला रहता हूँ तब उस अमृत सागर में गहरी डुबकी लगाकर बैठ जाता हूँ। ऐसे इस गीता माता का चरित्र में हर रविवार को आपको सुनाऊँ, यह तब हुआ है।
2. गीता की योजना महाभारत में की गयी है। गीता महाभारत के मध्यभाग में एक ऊँचे दीपक की तरह स्थित है, जिसका प्रकाश पूरे महाभारत पर पड़ रहा है। एक और छह पर्व दूसरी ओर बारह पर्व, इनके मध्य भाग में; उसी तरह एक ओर सात अक्षौहिणी सेना और दूसरी और ग्यारह अक्षौहिणी, इनके भी मध्य भाग में गीता का उपदेश दिया जा रहा है।
3. महाभारत और रामायण हमारे राष्ट्रीय ग्रंथ हैं उनमें वर्णित व्यक्ति हमारे जीवन में एक रूप हो गए हैं | राम, सीता, धर्मराज, द्रौपदी, भीष्म, हनुमान् आदि रामायण- महाभारत के चरित्रों ने सारे भारतीय जीवन को हजारों वर्षों से मंत्रमुग्ध-सा कर रखा है । संसार के अन्य महाकाव्यों के पात्र इस तरह लोक जीवन में घुले मिले नहीं दिखाई देते। इस दृष्टि से महाभारत और रामायण निस्सवह अद्भुत ग्रंथ हैं।
रामायण यदि एक मधुर नीति काव्य है, तो महाभारत एक व्यापक समाजशास्त्र | व्यासदेव ने एक लाख संहिता लिखकर असंख्य चित्रों, चरित्रों और चरित्र्योंका यथावत चित्रण बड़ी कुशलता से किया है। बिलकुल निर्दोष तो सिवा एक परमेश्वरके कोई नहीं है, लेकिन उसी तरह दोष पूर्ण भी इस संसार में कोई नहीं, यह बात महाभारत बड़ी स्पष्टता से बता रहा है। एक और जहाँ भीष्म युधिष्टर जैसों के दोष दिखाए गए है, तो दूसरी और कर्ण दुर्योधनादि के भी गुणों पर प्रकाश डाला गया है।
महाभारत बतलाता है कि मानव जीवन सफ़ेद और काले तंतुओं का एक पट है। अलिप्त रहकर भगवान् व्यास जगत के विराट संसार के छाया प्रकाशमय चित्र दिखलाते हैं। व्यासदेव के इस अत्यंत अलिप्त और उदात प्रथन-कौशल के कारण महाभारत ग्रंथ मानो एक सोने की बड़ी भारी खान बन गया है। उसका शोधन करके भरपूर सोना लूट लिया जाये |
4. व्यासदेव ने इतना बड़ा महाभारत लिखा, परंतु उन्हें अपनी ओर से कुछ कहना था या नहीं ? क्या किसी जगह उन्होंने अपना कोई खास संदेश भी दिया है ? किस स्थान पर व्यासदेव की समाधि लगी है? स्थान-स्थान पर अनेक तत्त्वज्ञान और उपदेशों के जंगल के जंगल महाभारत में आये है, परंतु इन सारे तत्त्वज्ञानों का, उपदेशों का और समूचे ग्रंथ का सार भूत रहस्य भी उन्होंने कहीं लिखा है? हाँ, लिखा है।
समग्र महाभारत का नवनीत व्यासजी ने भगवद्गीता में रख दिया है। गीता व्यासदेव की प्रमुख सिखावन और उनके मनन का संपूर्ण संग्रह है। इसी के आधार पर मैं मुनियों में व्यास हूँ यह विभूति सार्थक सिद्ध होने वाली है। गीता को प्राचीन काल से उपनिषद’ की पदवी मिली हुई है।
गीता उपनिषदोंकी भी उपनिषद् है, क्योंकि समस्त उपनिषदों को दुह कर यह गीतारूपी दूध भगवान् ने अर्जुनके निमित्तसे संसार को दिया है। जीवन के विकास के लिए आवश्यक प्रायः प्रत्येक विचार गीता में आ गया है। इसीलिए अनुभवी पुरुषों ने यथार्थ ही कहा है कि गीता धर्मज्ञान का एक कोष है। गीता हिंदू-धर्मका एक छोटा-सा ही, परंतु मुख्य ग्रंथ है।
5. यह तो सभी जानते हैं कि गीता श्रीकृष्ण ने कही है। इस महान् सिखावन को सुनाने वाला भक्त अर्जुन इस सिखावन से इतना समरस हो गया कि उसे भी ‘कृष्ण’ संज्ञा मिल गयी | भगवान् और भक्त का यह हड़त प्रकट करते हुए व्यासदेव इतने एकरस हो गये कि लोग उन्हें भी ‘कृष्ण’ नामसे जानने लगे | कहने वाला कृष्ण, सुनने वाला कृष्ण, रचनेवाला कृष्ण- इस तरह इन तीनो में मानो अद्वैत उत्पन्न हो गया, मानो तीनों की समाधि लग गयी। गीता के अध्येता में ऐसी ही एकाग्रता चाहिए ।
अर्जुनकी भूमिका का संबंध
6. कुछ लोगों का खयाल है कि गीता का आरंभ दूसरे अध्याय से समझना चाहिए। दूसरे अध्याय से ग्यारहवें श्लोक से प्रत्यक्ष उपदेश का आरंभ होता है, तो वहीं से आरंभ क्यों न समझा जाये ? एक व्यक्तिने मुझसे कहा “भगवान्। ने अक्षरों में अकारको ईश्वरीय विभूति बताया है।
इधर अशोच्यानन्वशोचस्त्वम् के आरंभ में अनायास ‘अकार’ आ गया है। अतः वहाँ से आरंभ मान लेना चाहिए ।” इस दलील को हम छोड़ दें तो भी इसमें शंका नहीं है कि वहाँ से आरंभ मानना अनेक दृष्टियों से उचित ही है। फिर भी उससे पहले के प्रास्ताविक भाग का भी महत्त्व है ही। अर्जुन किस भूमिका पर स्थित है, किस बात का प्रतिपादन करने के लिए गीता की प्रवृत्ति हुई है, यह इस प्रास्ताविक कथा भाग के बिना अच्छी तरह समझ में नहीं आ सकता |
7. कुछ लोग कहते हैं की अर्जुन का क्लैब्य दूर करके उसे बुद्ध में प्रवृत्त करने के लिए गीता कही गयी है। उनके मत में गीता केवल कर्मयोग ही नहीं बताती, बल्कि युद्ध- योग का भी प्रतिपादन करती है | पर जरा विचार करने से इस कथन की भूल हमें दीख पड़ेगी।
अठारह अक्षीहिनी सेना लड़ने के लिए तैयार थी | तो क्या हम यह कहेंगे कि सारी गीता सुनाकर भगवान्। ने अर्जुन को उस सेना की योग्यता का बनाया ? अर्जुन घबड़ाया, न की वह सेना तो क्या सेना की योग्यता अर्जुन से अधिक थी ? यह बात कल्पना में भी नहीं आ सकती |
अर्जुन, जो लड़ाई से परावृत हो रहा था, सो भय के कारण नहीं। सैकड़ो लड़ाइयों में अपना जौहर दिखाने वाला वह महावीर था उत्तर गो ग्रहण के समय उसने अकेले ही भीष्म, द्रोण और कर्ण के दाँत खट्टे कर दिये थे। सदा विजय प्राप्त करने वाला और सब नरों में एक ही सच्चा नर, ऐसी उसकी ख्याति थी।
वीर वृत्ति उसके रोम-रोम में भरी थी। अर्जुन को उकसाने के लिए उत्तेजित करने के लिए ‘क्लैब्य’ का आरोप तो कृष्ण ने भी करके देख लिया, परंतु उनका वह तीर बेकार गया और फिर उन्हें दूसरे ही मुद्दों को लेकर ज्ञान-विज्ञान संबंधी व्याख्यान देने पड़े तो यह निश्चित है। की महज क्लैब्य निरसन जैसा सरल तात्पर्य गीता का नहीं है।
8. कुछ दूसरे लोग कहते हैं कि अर्जुन की अहिंसा वृत्तिको दूर करके युद्ध में प्रवृत्त करने के लिए गीता कही गयी है| मेरी दृष्टि से यह कथन भी ठीक नहीं है। यह देखनेके लिए पहले हमें अर्जुन की भूमिका बारीकी से समझनी चाहिए। इसके लिए पहले अध्याय से और दूसरे अध्यायमें पहुँची हुई उसकी खाड़ी से हमें बहुत सहायता मिलेंगी।
लेखक / Writer | विनोबा जी / Vinoba Ji |
भाषा / Language | हिन्दी / Hindi |
कुल पृष्ठ / Total Pages | 237 |
PDF साइज़ | 2.3 MB |
श्रेणी / Category | प्रेरक / Inspirational |
Source / Credit | mkgandhi.org |
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