घरेलू चिकित्सा | Gharelu Chikitsa Book PDF in Hindi Free Download

लेखक / Writer | राजेन्द्र प्रकाश भटनागर / Rajendra Prakash Bhatnagar |
पुस्तक का नाम / Name of Book | घरेलू चिकित्सा / Gharelu Chikitsa |
पुस्तक की भाषा / Book of Language | हिंदी / Hindi |
पुस्तक का साइज़ / Book Size | 3.89 MB |
कुल पृष्ठ / Total Pages | 124 |
श्रेणी / Category | स्वास्थ्य / Health , आयुर्वेद / Ayurveda |
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घरेलू चिकित्सा पुस्तक का एक मशीनी अंश
यह जीवित शरीर तीन चीजों से मिलकर बना है–जड शरीर (जो पृथ्वी, जल, श्रग्ति, वायु और आकाश-इन पच भूतो से निर्मित है), मन और आत्मा से वना है। इन तीनो को जीवन के तीन “पाये” (त्रिदण्ड) कहते है श्रत जीवित शरीर तिपाये पर टिका हुआ है।
इनमे से आत्मा ही परमात्मा का श्रग है श्रौर उसमे किसी प्रकार की
खराबी नही होती, वह विकार-रहित रहता है। शेष दो–शरीर और मन–ही रोगो के ‘श्रधिष्ठान’ (ऑश्रय आधार) है। शरीर मे हाने वाले रोग ‘शारीरिक रोग और मन में होने वाले रोग ‘मानसिक रोग, कहलाते है ।
जिस किसी कारण और परिवर्तन से शरीर और मेन में दु ख॑ होता है, उसे “रोग या व्जींस्यथावम्दी कहते है।
आयुर्वेद शास्त्र में यह सेद्धान्तिक रूप से स्वीकार कर लिया गया है कि मनुष्य के जरीर में वात, पित्त और कफ नामक तीन दोष निश्चित परिमाण में होते है। जब तक इनका यह निश्चित परिमाण बना रहता है, तव तक मनुष्य निरोगी या स्वस्थ रहता है। इन बीत को दोषो की ‘समावस्था’ कहते है।
परन्तु, जब बाहरी और भीतरी कारणो से इनका निश्चित परिमाण विगड जाता है, श्रर्थात् जब दोष घढ जाते है अ्रथव्रा घट जाते है तो रोग या बीमारी हो जाती है । दोपा के घटने से उनके कार्य और गुण कम हो जाते हैं, श्रत सास सकलाक मालूम नही होती, परन्तु जब दोप बढ जाते है तो शरीर श्र मन मे अनेक बुरे लक्षण पैदा होते है, इस दशा को दोषों का ‘कोप’ कहते है और वास्तव में अधिकाणश रोग दोपो के कोप के कारग्ा ही होते है ।
घरेलू | Gharelu Chikitsa Book PDF in Hindi Free Download