छन्द रामायण PDF | Chhand Ramayan PDF In Hindi

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छन्द रामायण – Chhand Ramayan Hindi Book PDF Free Download

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रामायण की ज्ञानवर्धक चौपाई

बाल काण्ड वन्दना गजमुख, गणनाथ कृपा करियो उदरोन्नत पार्वती सुत हो ।

प्रथमहं पूजत द्विज देव तुम्हें नवनिधि सब सिद्धिन से युत हो ।

पितु मातु में भक्ति तुम्हारि बड़ी शिवशंकर के अनुपम सुत हो ।

मूषक वाहन इकदन्त प्रभो तुम विघ्न हरण करुणायुत हो ॥

हे शारद तवज्ञान की ज्योति हिया में जलाऊँ ।

लिखना चाहूँ राम कथा कहँ मैं यदि आपको आशिष आज मैं पाऊँ ।

हे माँ शत बार प्रणाम उर अच्छत चन्दन फूल चढ़ाऊँ ।

मातु करौं बिनती करू वर दो मोहि मातु मैं पूत तेरो श्रीराम चरित्र लिखूं सुख पाऊँ ॥

 गणपति, शिव गौरि को ध्यान करूँ धरि शीश चरण सब देव मनाऊँ ।

जितने जड़ चेतन हैं जगके उनमें लखि राम को शीश नवाऊँ ।

श्री घाट वाले बाबा जी के पद में सिरनायके में अति ही सुख पाऊँ ।

है उनकी तो भारी कृपा मुझ तेहि कारण ही कछु में कर पाऊँ ॥

उन आदि कवी बाल्मीकि जी को जिनने रामायण थी रचि डाली ।

जिन राम के पूत प्रवीण किये अरु सीय को बेटी बनाय के पाली ।

करता है ‘महेश’ प्रणाम उन्हें जिनने जग काव्य की नींव है डाली ।

कर जोरि प्रणाम करूँ तुलसी तुम राम चरित्र के बाग के माली ॥

 श्री रामअधार, त्रिवेनी जी थे मम पितृ औ मातु बड़े सुखदाई ।

उनके पद माँहि प्रणाम करूँ जिन सुमिरन से मिट जात बुराई ।

करूँ वन्दना भारत भूमि को मैं जहाँ जन्म लियो सियपति रघुराई ।

फिर विनवहुँ दैत्य भये जो नये उनकी श्रीराम मिटायें बुराई ॥

अति नेह सौं माथ ध उनके जो हैं प्रेम के बोल सहयोगी औ सब पग में सुनाते ।

 परिवारी मेरे दे नेह सदा मम कष्ट मिटाते ।

बिनवौं सब सन्तन को जो सदा पर हित फल वृक्ष नदी बन जाते ।

उनकोहु कर जोरि प्रणाम करूँ कारण जो मगशूल बिछाते ॥

सुत मारुति को मन ध्यान करूँ श्रीराम के भक्त महा बलशाली ।

जिन कौतुक सिन्धु को लाँघ दियो सिय खोजि के मुद्रिका वृक्ष से डाली ।

अरु मारि दियो सुत रावण को करी स्वर्ण की लंक जराय के काली ।

 जिनके उर रामजी वास करें तेहि पाँव परो बनि आज सवाली ॥ 

सिय राम लखन उर वास करें उन्हें नेक नींद में हू नहि भूलें ।

मम अन्तस में प्रभु पाद बसें हम शीश झुकाय उन्हें नित छूलें ।

कलिका तव नाम की है उर में वह नाथ बसन्त सी नित्य ही फूले ।

प्रभु को परि पाँव प्रणाम करूँ क्षमियो तुम मोहि भई बड़ी भूलें ॥

कलिकाल में राम कथा जो पढ़ें या सुनें सब सन्त हैं पूज्य हमारे ।

 जिन सपनेहु राम को नाम लियो भगवान उन्हें भव पार उतारें ।

मैं तो हूँ मति मन्द मलीन महा लिखूँ रामकथा प्रभु पाद सहारे ।

बसी दैत्य सी वासनायें मन में उन्हें एक ही बाण से नाथ सँहारे ।

कम्बन ऋषि पाद प्रणाम करूं जिन दक्षिण रामकथा शुचि गाई ।

रचि के इराभावतारम उनने श्रीराम की भक्ति की लीक चलाई ।

 विनवौं परदेश के सन्तन को जिन राम कथा निज देश सुनाई ।

उनके पद की सिर धूल धरूँ जिन्हें धोखेहु राम की याद होआई ॥

अति ज्ञान को सागर राम कथा मन संशय दूर करे सिगरे ।

हर योनि से मुक्ति मिले उनको ये पवित्र कथा जिन कान परे ।

उन्हें राम के धाम में वास मिले रघुनाथ चरण जिन माथ धरे ।

श्रीराम को जपिके पापि भव सिन्धु तरे ॥

नाम जहाज बड़ो भव सरिता में पुल-सी है रामकथा सुनतहि जग के अघ क्षार करे ।

 रघुनाथ के भक्त महान बड़े भवनार को कूद के पार करे ।

भव धेनु के पाद को चिन्ह बने उनको जो हैं राम में ध्यान धरे ।

भव सूख के रेत बने उनको सब में जिन्हें राम दिखाई परे ।।

अति दीन सो दास मैं तोर प्रभु तव पूजन की विधि हू नहि जानू ।

मम जीवन केरि अधार तुम्हीं प्रभु पाप को जारन हेतु कृशानू ।

 तुम स्वामि सखा गुरु मातु-पिता प्रभु आपको ही सर्वस्व में मानू ।

तव पाद में नाथ प्रणाम करूँ अच्युत भवरात्रि विनाशक भानू ॥ 

हर कल्प में विष्णु जी राम भये हर कल्प में ही उन रावण मारो।

कई बार हैं रूप अनेक धरे निज भक्तन के हित दैत्य संहारो ।

उनमें से सुनाऊँ मैं एक कथा प्रभु राम बनें महिभार उतारो।

वरदान दियो मनु को उनने सुत दशरथ के बनि रावण मारो ॥

लेखक / Writerमहेशचन्द्र शुक्ल / Mahesh Chandra Shukla
भाषा / Languageहिन्दी / Hindi
कुल पृष्ठ 18
PDF साइज़8 MB
श्रेणी / Categoryधार्मिक / Religious
Sourcearchive.org

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