भारत विभाजन के गुनहगार : राममनोहर लोहिया द्वारा मुफ्त हिंदी पीडीऍफ़ पुस्तक | Bharat Vibhajan Ke Gunahgaar : by Ram Manohar Lohiya Free Hindi PDF Book
भारत विभाजन के गुनहगार : राममनोहर लोहिया द्वारा मुफ्त हिंदी पीडीऍफ़ पुस्तक | Bharat Vibhajan Ke Gunahgaar : by Ram Manohar Lohiya Free Hindi PDF Book

भारत विभाजन के गुनहगार | Bharat Vibhajan Ke Gunahgaar ? Hindi
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पुस्तक का नाम / Name of Book | भारत विभाजन के गुनहगार ? / Bharat Vibhajan Ke Gunahgaar Hindi Book in PDF |
लेखक / Writer | राममनोहर लोहिया / Ram Manohar Lohiya |
पुस्तक की भाषा / Bharat Vibhajan Ke Gunahgaar Book by Language | हिंदी / Hindi |
पुस्तक का साइज़ / Book by Size | 6.3 MB |
कुल पृष्ठ / Total Pages | 102 |
श्रेणी / Category | हिंदू / Hinduism |
डिप्रेशन से बचाती और उम्मीद जगाती हैं किताब
कहीं न कहीं आपने यह पढ़ा या सुना जरूर होगा कि किताबें हमारी अच्छी दोस्त होती हैं | विज्ञानियों का कहना है कि किताब पढ़ने से न केवल हमारा ज्ञान बढ़ता है बल्कि यह हमारे मूड को रिप्रेश करने का भी काम करती है | अमेरिका की पीटरसबर्ग यूनिवर्सिटी में हुए एक अध्ययन के मुताबिक जो लोग किताबें पढ़ने में अधिक समय व्यतीत करते है उन्हें डिप्रेशन होने का खतरा कम हो जाता है |
“ सभी जीवों के प्रति दयावान बनो।”
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भारत विभाजन के गुनहगार | Bharat Vibhajan Ke Gunahgaar PDF Detail
भारत की आजादी के साथ जुड़ी देश-विभाजन की कथा बड़ी व्यथा-भरी है। आजादी के सुनहरे भविष्य के लालच में देश की जनता ने देश-विभाजन का जहरीला घूँट दवा की तरह पी लिया, लेकिन यह प्रश्न आज तक अनुत्तरित ही बना हुआ है कि क्या भारत-विभाजन आवश्यक था ही? इस सम्बन्ध में मौलाना अब्दुल कलाम आजाद ने अवश्य लिखा है और उन्होंने विभाजन की जिम्मेदारी तत्कालीन अन्य नेताओं पर लादी है।
डॉ० राममनोहर लोहिया ने विभाजन के निर्णय के समय होने वाली सभी घटनाओं को प्रत्यक्ष देखा था और इस पुस्तक में उन्होंने देश-विभाजन के कारणों और उस समय के नेताओं के आचरण पर बड़ी निर्भीकता से विश्लेषण प्रस्तुत किया है।लोहिया जी इस देश-विभाजन को नकली मानते थे और उनका विश्वास था कि एक दिन फिर देश के बँटे हुए टुकड़े एक होकर पूरा भारत एक बनाएँगे। लोहिया का यह सपना सच हो, यही कामना हम भी करते हैं।
मौलाना आजाद कृत ‘इंडिया विन्स फ्रीडम’ के परीक्षण की जो बात मेरे मन
में उठी, उसे जब मैंने लिखना शुरू किया तो वह देश के विभाजन का एक नया
वृतांत बन गया। यह वृतांत हो सकता है, बाह्य रूप में, संगतवार व कालक्रमवार
न हो, जैसा कि दूसरे लोग इसे चाहते, लेकिन कदाचित यह अधिक सजीव व वस्तुनिष्ठ बन पड़ा है।
छपाई के दौरान इसके प्रूफ देखते समय इसमें स्पष्ट हुए दो लक्ष्यों के प्रति मैं सतर्क हुआ। एक, गलतियों और झूठे तथ्यों को जड़ से धोना और कुछ विशेष घटनाओं और सत्य के कुछ पहलुओं को उजागर करना और दूउन मूल कारणों को रेखांकित करना जिनके कारण विभाजन हुआ।
इन कारणों में,मैंने आठ मुख्य-कारण गिनाए हैं । एक, ब्रितानी कपट, दो, कांग्रेस नेतृत्व का उतारवय, तीन, हिन्दू-मुस्लिम दंगों की प्रत्यक्ष परिस्थिति, चार, जनता में दृढ़ता और सामर्थ्य का अभाव, पाँच, गाँधीजी की अहिंसा, छ:, मुस्लिम लीग को
फूटनीति, सात, आए हुए अवसरों से लाभ उठा सकने को असमर्थता और आठ,
हिन्दू अहंकार।
श्री राजगोपालाचारी अथवा कम्युनिस्टों की विभाजन समर्थक नीति और
विभाजन के विरोध में कट्टर हिन्दूवादी या दक्षिणपंथी राष्ट्रवादी नीति को विशेष
महत्त्व देने की आवश्यकता नहीं।
ये सभी मौलिक महत्त्व के नहीं थे। ये सभी गम्भीर शक्तियों के निरर्थक और महत्त्वहीन अभिव्यक्ति के प्रतीक थे। उदाहरणार्थ, विभाजन के लिए कट्टर हिन्दूबाद का विरोध असल में अर्थहीन था, क्योंकि देश को विभाजित करने वाली प्रमुख शक्तियों में निश्चित रूप से कट्टर हिन्दूवाद भी एक शक्ति थी। यह उसी तरह थी जैसे हत्यारा, हत्या करने के बाद अपने गुनाह मानने से भागे ।.
इस संबंध में कोई भूल या गलती न हो। अखण्ड भारत के लिए सबसे
अधिक व उच्च स्वर में नारा लगाने वाले, वर्तमान जनसंघ और उसके पूर्व
पक्षपाती जो हिन्दूवाद की भावना के अहिन्दू तत्त्व के थे
सौजन्य से डॉ० राममनोहर लोहिया
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