भक्त नामावली PDF : अज्ञात द्वारा मुफ्त हिंदी पीडीऍफ़ पुस्तक | Bhakt Namavali PDF : by Unknown Free Hindi PDF Book
भक्त नामावली PDF : अज्ञात द्वारा मुफ्त हिंदी पीडीऍफ़ पुस्तक | Bhakt Namavali PDF : by Unknown Free Hindi PDF Book

पुस्तक का नाम / Name of Book | भक्त नामावली PDF / Bhakt Namavali PDF |
लेखक / Writer | अज्ञात / Unknown |
भक्त नामावली पुस्तक की भाषा / Bhakt Namavali Book by Language | हिंदी / Hindi |
पुस्तक का साइज़ / Book by Size | 3 MB |
कुल पृष्ठ / Total Pages | 94 |
पीडीऍफ़ श्रेणी / PDF Category | धार्मिक / Religious , हिंदू / Hinduism |
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डिप्रेशन से बचाती और उम्मीद जगाती हैं किताब
कहीं न कहीं आपने यह पढ़ा या सुना जरूर होगा कि किताबें हमारी अच्छी दोस्त होती हैं | विज्ञानियों का कहना है कि किताब पढ़ने से न केवल हमारा ज्ञान बढ़ता है बल्कि यह हमारे मूड को रिप्रेश करने का भी काम करती है | अमेरिका की पीटरसबर्ग यूनिवर्सिटी में हुए एक अध्ययन के मुताबिक जो लोग किताबें पढ़ने में अधिक समय व्यतीत करते है उन्हें डिप्रेशन होने का खतरा कम हो जाता है |
“ सभी जीवों के प्रति दयावान बनो।”
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भक्त नामावली PDF | Bhakt Namavali PDF in Hindi
भक्त नामावली PDF का विवरण
हरिवंश नाम पभ्रुव फदत ही वाढ़े आनँद बेल |
प्रेम (ौ उर. जधथभे नवत्न उभधभए वर केलि ॥ १॥
निगम ब्रह्म पससत नहीं से। रस सब ते एूरि)
कियी प्रयट ह॒रियंश जी रसिकानि जीवरनिधूरि ॥ २ ॥
घर्न चंद चरन अदुज स्याद सन क्रम बचन श्रतीति |
घुदावल निन्न प्रेम फो तब पाने रस रीति ॥ ३॥
कृष्णुचद्र की फाहुत दी मत का असम रिदि जाई |
विसल भजन शसुख-सिंघु में रहै चिच ०5एशाइ ॥ ४ ॥
श्रो गे।पषिनाथ पद उर घरे मदद गोप्य रससार |
बिछु निर्धंत आये हिये अद्भुत झुशुत्ध विदाई ॥ ५ ॥
पत्ति छुटुंब ददेलत सबे घूँचट पढ दिये डारि।
ऐेद गेह विसंस्यो पिन्हें मोहच रूप निद्षारि ॥ ६ |
धीर गंभीर समुद्र सम सील सुभाउ अनूप |
सब अंग सुदर देखत अुख सुंदर सुलद सरूप | ७ ॥
ब्यौँ हरि आपुन निद हैं त्यथायें सफ अनादि ॥ ८॥
प्रभट सथा जय सुख अप्भुत थीपशुनिंद।
कहो महा सिंभार रस सहित प्रेम सकारंद ॥ <॥
पद्खापर्ति जचद्न प्र दस क्षाने सीहुन |
अष्टपदी जे जादे सुचत फिर ताके भादच॥ १०॥
धर स्वामी ला सती ओवर प्रथएं आनि |
तिलक साभपत किये रच सब तिहाऋनि परनानि ॥ ११ ॥
रसिक अनन्य उरिवास जू गाये। निष्थ विद्वार |
सेवा हू में दुए किये विधि निषेव जंगार । १२॥
खंघन निर्कुजनि रछप दिन वाढ़री अधिक सनेह।
चिहारी द्वेत सभि छाड़ि दिए सुख देद्द ॥ १३ ॥
रंक छात्रपति कोहु को धरी ने सन परपाद |
रहे भींजि सस प्रेम में जीने कर फरपादद ॥ १४ ॥
नहा हुए चिद्व्ष भए अति अखिछ अलार।
सेवा विधि जिंहि समे को फीनी त्तन ग्यैह।२ ॥ १५ ॥
राग भोग अजूभुत विविध जे। चढिए जिदिकास |
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