आनंदमठ : बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय द्वारा मुफ्त हिंदी पीडीऍफ़ पुस्तक | Anandmath : by Bankim Chandra Chattopaadhyay Free Hindi PDF Book
आनंदमठ : बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय द्वारा मुफ्त हिंदी पीडीऍफ़ पुस्तक | Anandmath : by Bankim Chandra Chattopaadhyay Free Hindi PDF Book
दोस्तों आप सभी जानते हो ‘आनंदमठ’ संन्यासी आंदोलन और बंगाल अकाल की पृष्ठभूमि पर लिखी गई बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय की कालजयी कृति ‘आनंदमठ’ सन 1882 ई. में छप कर आई । इस उपन्यास की क्रांतिकारी विचारधारा ने सामाजिक व राजनीतिक चेतना को जागृत करने का काम किया। इसी उपन्यास के एक गीत ‘वंदेमातरम’ को बाद में राष्ट्रगीत का दर्जा प्राप्त हुआ।
पुस्तक का नाम / Name of Book | आनंदमठ /Anandmath Hindi Book in PDF |
लेखक / Writer | बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय / Chattopaadhyay |
पुस्तक की भाषा / Anandmath Book by Language | हिंदी / Hindi |
पुस्तक का साइज़ / Book by Size | 671.6 KB |
कुल पृष्ठ / Total Pages | 78 |
श्रेणी / Category | हिंदू / Hinduism , साहित्य / Literature |

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डिप्रेशन से बचाती और उम्मीद जगाती हैं किताब
कहीं न कहीं आपने यह पढ़ा या सुना जरूर होगा कि किताबें हमारी अच्छी दोस्त होती हैं | विज्ञानियों का कहना है कि किताब पढ़ने से न केवल हमारा ज्ञान बढ़ता है बल्कि यह हमारे मूड को रिप्रेश करने का भी काम करती है | अमेरिका की पीटरसबर्ग यूनिवर्सिटी में हुए एक अध्ययन के मुताबिक जो लोग किताबें पढ़ने में अधिक समय व्यतीत करते है उन्हें डिप्रेशन होने का खतरा कम हो जाता है |
“ सभी जीवों के प्रति दयावान बनो।”
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बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने आनंदमठ कब लिखा था?
आनंदमठ की रचना बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय ने १८८२ में की थी.
बंकिम चंद्र चटर्जी के उपन्यास आनंदमठ में किसका उल्लेख है?
आनंदमठ उपन्यास में उत्तर बंगाल में 1773 के सन्यासी विद्रोह का वर्णन किया गया है। इस उपन्यास की क्रांतिकारी विचारधारा ने सामाजिक व राजनीतिक चेतना को जागृत करने का काम किया।
आनंदमठ उपन्यास पुस्तक का विवरण
आनंदमठ’ में जिस काल खंड का वर्णन किया गया हैं वह हन्टर की ऐतिहासिक कृति ‘एन्नल ऑफ रूरल बंगाल’, ग्लेग की ‘मेम्वाइर ऑफ द लाइफ ऑफ वारेन हेस्टिंग्स’ और उस समय के ऐतिहासिक दस्तावेज में शामिल तथ्यों में काफी समानता हैं।
बहुत विस्तृत जंगल है। इस जंगल में अधिकांश वृक्ष शाल के हैं, इसके अतिरिक्त और भी अनेक प्रकार के हैं । फुनगी-फुनगी, पत्ती-पत्ती से मिले हुए वृक्षो की अनंत श्रेणी दूर तक चली गई हैं । घने झुरमुट के कारण आलोक प्रवेश का हरेक रास्ता बंद हैं। इस तरह पल्लवो का आनंद समुद्र कोस दर कोस– सैकड़ों-हजारो कोस में फैला हुआ है, वायु की झकझोर झोके से बह रही हैं।
नीचे घना अंधेरा, माध्याह्न के समय भी प्रकाश नही आता- भयानक दृश्य ! उत्सव जंगल के भीतर मनुष्य प्रवेश तक नहीं कर सकते, केवल पत्ते की मर्मर ध्वनि और पशु-पक्षियों की आवाज के अतिरिक्त वहां और कुछ भी नहीं सुनाई पड़ता।
एक तो यह अति विस्तृत, अगम्य, अंधकारमय जंगल, उस पर रात्रि का समय! पतंग उस जंगल में रहते हैं। लेकिन कोई चूं तक नहीं बोलता हैं । शब्दमयी पृथ्वी की निस्तब्धता का अनुमान किया नहीं जा सकता है; लेकिन उस अनंत शून्य जंगल के सूची-भेद्य अंधकार का अनुभव किया जा सकता है । सहसा इस रात के समय की भयानक निस्तब्धता को भेदकर ध्वनि आई” मेरा मनोरथ क्या सिद्ध न होगा ……….. | इस तरह तीन बार वह निस्तब्ध अंधकार अलोड़ित हुआ- ‘तुम्हारा क्या प्रण हैं?’ उत्तर मिला- “मेरा प्रण ही जीवन-सर्वस्व हैं?”
प्रति शब्द हुआ- ”जीवन तो तुच्छ है, सब इसका त्याग कर सकते हैं !” “तब और क्या हैं..और क्या होना चाहिए? उत्तर मिला- ”भक्ति!”
“बंगाब्द सन् 1176 के गरमी के महीने में एक दिन, पदचिन्ह नामक एक गांव में बड़ी भयानक गरमी थी। गांव घरो से भरा हुआ था, लेकिन मनुष्य दिखाई नहीं देते थे। बाजार में कतार पर कतार दुकाने विस्तृत बाजार मे लंबी-चौड़ी सड़के, गलियों में सैकड़ो मिट्टी के पवित्र गृह, बीच-बीच में ऊंची-नीची अट्टालिकाएं थी । आज सब नीरव हैं; दुकानदार कहां भागे हुए है, कोई पता नही ।
बाजार का दिन है, लेकिन बाजार लगा नही है, शून्य हैं । भिक्षा का दिन हैं, लेकिन भिक्षुक बाहर दिखाई नहीं पड़ते। जुलाहे अपने करघे बंद कर घर में पड़े रो रहे है । व्यवसायी अपना रोजगार भूलकर बच्चो को गोद में लेकर विह्वल है । दाताओं ने दान बंद कर दिया हैं, अध्यापकों ने पाठशाला बंद कर दी है, शायद बच्चे भी साहसपूर्वक रोते नही हैं । राजपथ पर भीड़ नहीं दिखाई
बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय
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