
एक्यूप्रेशर प्राकृतिक उपचार PDF | Akyu Pressor Prakritik Upchar PDF In Hindi Free Download
पुस्तक का नाम / Name of Book | एक्यूप्रेशर प्राकृतिक उपचार / Akyu Pressor Prakritik Upchar |
लेखक / Writer | रवीन्द्र कुमार / Ravindra Kumar |
पुस्तक की भाषा / Book by Language | हिंदी / Hindi |
पुस्तक का साइज़ / Book by Size | 7.09 MB |
कुल पृष्ठ / Total Pages | 204 |
पीडीऍफ़ श्रेणी / PDF Category | आयुर्वेद / Ayurveda |
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एक्यूप्रेशर प्राकृतिक उपचार PDF पुस्तक का एक मशीनी अंश
एव्युप्रेशर उपचार-पद्धति प्रकृति-पदत्ते विज्ञान है। हमारे ऋषि, प्रुंनि और गृहरुथ इसको उपयोग करते रहे हैं, पर विज्ञान के पीछे अंधी दौड़ के कारण भारत के इस प्रावीन ज्ञान को हमने भुला दिया है। सुश्रुत के लेखों पे इस विद्या का उल्लेख है, एवं 3000 वर्ष पूर्व यह पद्धति भारत में प्रचलित थी।
इस सहजपूर्ण, अहिंसक और निशुल्क पद्धति के व्यापक ग्रवार व अध्ययन द्वारा विश्व आरोग्य विशेषकर भारत जैसे अनेक विकासशील एवं निर्धन देशों की गहन समस्या सरलता से हल की जा सकती है।
हम सभी नीरोग, स्वस्थ एवं सुखी रहना चाहते हैं और विभिन्न संप्रदायों से जुड़े हुए विभिन्न विधियों और नियमों के अम्तर्गत प्रयासरत भी रहते हैं। मानव शरीर संश्लिप्ट दोष रहित उपकरण है, जो कि संपूर्ण क्रियाये स्वदः संचालित करता रहता है। उसकी अपनी संपन्न, कारगर, अत्यन्त ग्भावकारी, सहज और सार्वजनौन, सार्वकालिक, सार्वभौमिक एवं सार्वदेशिक विधियाँ हैं।
उसके अन्तर्गत यदि हम भोजन,श्रम और विज्ञाम में संतुलन न रखें और इनके आधारभूत निवों का उल्लघंन करते हैं, हो शरीर में विषैले तत्वों का संग्रह प्रारम्म हो जाता है जिसके फलस्वरूप जैव-रसायनिक, जैक-ऊर्जा और अन्य शारीरिक क्रियाओं पर प्रभाव पड़ता है। शगैर में इन अवांछनीय तत्वों का संग्रह ही रोग है। जिसका नामकरण सम्बन्धित लक्षणों, शरीर के अंग्रें या सूकषमओकों के आषार पर किश्य जज है।
इस चिकिन्सा पद्धति एवं सर्वप्राह्न है! हमारे ऋषि, भुनि, साधु, संत और गृहर्थ इसका प्रयोग करते रहे हैं। आज भी अनेक आधूषणों और वच्चो का उपयोग, गृहकार्य और श्रपकार्यों मे एक्बुप्रेशर जुड़ा हुआ है। हाथ में कड़ा, पैर में झांज, गले में हार, छोटे बच्चो को काला धागा पहनाना, कान में जनेऊ का लपेटना, हाथ मे कलेवा बॉधना, कपड़े धोना,कुएं से पानी निकालना, लस्सी बनाना, बेलन चलाना, सर पर घड़ा रखना आदि के मूल में एक्यु्रेशर समाया हुआ है।
प्रशासन, अर्डपदमासन, सुखासन, वज्ासन आदि द्वाश योग में एवं नित्यप्रति के क्रिया-कलापों द्वात किस प्रकार यह विधि हमें लाभान्वित करती आ रही है। अब इस ज्ञान, सजगता और एकाग्रता में जब-जब दैनिक जीवन की क्रियाओं की प्रेक्षा करेंगे गो पौड़ा-मुक्त होने की, तनाव-मुक्त होने की और सुखी जीवन जीने की कला निश्चित जाम जायेंगे! पर पुरातन मूल्यों को जानना है, श्रमजीवी होना है, स्वयं तपना है, तब ही पूर्ण लाभ होगा।
यह चिकित्सा पद्धति भारतवर्ष में 3000 वर्ष पूर्व प्रचलित थी पर शुद्ध रूप में यह विद्यमान मन रह सकी। चीनी यात्री यहां निरन्तर आते-जाते रहते थे। यहां से सीख कर वे इस ज्ञन को चीन ले गये। धीरे-धीरे भारत में यह चिकित्सा लुप्त हो गई लेकिन चीन में इस चिकित्सा पद्धति का बहुत विस्तार हुआ और बाद में विशेषकर एक्यूपंचर का जन्मदाता चीन को कहां जाने लगा।
भारत में लंका, चीन, जापान आदि देशों मे बौद्ध भिष्ठु इस ज्ञान को लेकर
गये। स्पष्ट उल्लेख मिले हैं कि छठी शताब्दी में बौद्ध भिक्षुओं ने इस ज्ञान को जापान पहुँचाया। जापान में यह पद्धति “शिआस्तु” के नाम से विकसित व लोकप्रिय हुई, इसे यूर्ण मान्यता प्राप्त हुई और इसके शिक्षण संस्थान स्थापित हुए।
अमेरिका, ग्रेट ब्रिटेन, कनाडा, आस्ट्रेलिया, भारत आदि देशों में भी अब यह लोकप्रिय होती जा रही है। इस लोकप्रियता का प्रमुख कारण है इस पद्धति की सहजता और यह विशेषता कि यह रोगी को घर बैठे, सिनेमा या टी.वी. देखते, चलते-फिरते यात्रा करते किसी भी स्थान पर दी जा सकती है।
Note – यह अंश मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियाँ संभव हैं
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