आदर्श निबंध माला और पत्र लेखन | Adarsh Nibandh Mala Aur Patra Lekhan PDF
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आदर्श निबंध माला और पत्र लेखन – Adarsh Nibandh Mala Aur Patra Lekhan Book PDF Free Download

आदर्श निबंध माला और पत्र लेखन PDF
विचार-तालिकायें:– 1 प्रकृति-सौन्दर्य (१) प्रस्तावना – प्रकृति की मनोरम छटा । (२) प्रात कालीन शोभा श्रौर श्रानद । (३) वृक्षं, लता, पशु और पक्षी गान । (४) हिमा- च्छादित पर्वत । (५) जलाशय और पुष्करणी (६) सान्ध्य सभा । (७) नभ मेंटल । (८) उपसंहार-सारथि । विश्व में प्रकृति की अखट राज्य है. बिजली पाटल, गिरि-गुदा, वृक्ष मतां श्रर पर्यंत शियर सब उसके सी साथी हैं।
सूर्यदेव समरत दिन गर्मी प्रदान करते हैं, रात्रिकाल में चन्द्रदेव अपनी सुहावना किरणां से पका मन मोहते हैं । तारागण सुदूर नभ स्थली से दूरबीन लगाये प्रकृति का मनोरम रूप निहारते हैं। मादलों के प्राचल से झांककर चपल चपला जगत का चितं श्राकर्षित करती है। उन्माद भी सरितायें म मावेग से अठखेलियां करती हुई अपने प्यारे समुद्र को थोर भागी ना रही हैं। उन्हें अपने तन बदन की सुध तक नहीं सरोवर और पुष्कर- शियाँ कमलों में भर गई है
कर तान अलापीं इसों ने कमल की कोमल फलियों को हिला हिला फर अपना राग अलापा | शुक श्रीर सारिक भी कोयल के स्वर में स्वर मिला कर अपने मधुर स्वर से धानद वर्षा रहे हैं। श्रमराइयों में इन्द्र लोक का भ्रम हो रहा है। घरे सारी मजु मजरी मंडित अमराइयां मोरों से लदी पड़ी है। प्रकृति का मनोरम तो तनिक अवलोकन फीजिये कैसा अनुपम दृश्य है ? वृक्ष श्री लत, कुन तो मन को हरण किये ही लेते हैं वृक्षों को टालों पर कीश मडलो मचक मचक कर मचक रहीं है ।
कहीं मयूर वृन्द नाच नाच कर नर्तकियों को भी ला रहे हैं, कहीं पपीहा ‘पीउ-पीड’ की रट लगा रहे है। कही छोटी- छुट्टी चिड़िया चहचदा कर वृक्षों को शब्दायमान कर रहीं हैं। कहीं इग्यि हरिशियों के यूथ के यूथ किलोल कर रहे हैं । कही बल मे पक्षी स्नान कर रहे हैं लताच्छादित वनस्थगी की मनोज श्राभा तो चित्त को ग्राफर्पित किये ही लेती है। ऐसे रमणीय सुन्वद धार ऐसे मनोहारी दृश्य को देख कर किस का मन नहीं मोड़ सकता ।
आइये, तनिक पुष्प पूरित पुष्करणियों का अवलोकन तो कर लजिये कैसे लाल पीले नाले और सफेद कमल खिल रहे हैं जिन के ऊपर मतवाले मौर मडरा रहे है। लहराते हुये नीले नल पर हरी सेवार छाई हुई है। इठलाती हुई नदिया की प्रखर धारा सरोवरों में विचित्र दृश्य उपस्थित फर रही है। फमलों से भरे सरोवरों में इस पक्ति षद्ध सड़े किसी फे श्रागमन की प्रतीक्षा कर रहे हैं। भर भर शब्द फरते हुये भरने लग शान्तिं भग कर रहे हैं। उनकी छद्दरती हुई बुन्दै मोतियों की सुन्दरता को मत कर रही है।
नयन और वाटिकाओं में हरे, पीले, नीले, लाल, गुप्ताबी यह भारत वृक्षों से कैसी श्रलिया कर रहा है उसने सहस्त्र कृत की पत्तियों पो धरती पर मर दिया हरे वृक्षों के बीच श्वेत पत्थर की जिला पर से बहते हुये भग्गने पैसे सुन्दर लग रहे हैं। तनिक हिमाच्छा दित दिम शृ के सिरों की श्राभा तो अवलोकि ये सूप रश्मियों के पहने सेकसी सुनहरी प्राभा धारगा किये हुये है ?
गगन महल में गर्जने हुवे बादल चमचमाती हुई विद्युत ता दर्शयों के हृदय पर कैसा मनमादक प्रयाद डाल रहे हैं बादलों या चाप चापल्यतो देखिये यह फैसा मिनट मिनट में अपना रूप बदल रहे हे श्रम श्रमी सो प्राकृति में ये श्रम पैसा विशाल रूप धारण कर लिया है? श्रमी मी बादल अपनी नयन रजन श्राभा से मनोरंजन कर रहे थे, श्रम कैसा प्रलय फाड मचा डाला। भगवान की दस पार लेला को यगन करने की किस म शक्त है।
माराश यह कि प्रकृति श्रनेक रूप चना कर अपने दर्शकों को प्रसन्न करती है। कभी किसी प्रकार का रूप बनाती है कभी किसी प्रकार का घाना धारण करती है । कभी अपनी अनूठी छवि से दर्शकों को रिझाती है कर्म श्रानद सागर में गाते लगवाती है। ऐ भगवती प्रकृते ? मैं तो नत मस्तक होकर तुझे नमस्कार ही करता हूँ।
लेखक / Writer | – |
भाषा / Language | हिन्दी / Hindi |
कुल पृष्ठ / Total Pages | 374 |
PDF साइज़ | 5.8 MB |
श्रेणी / Category | निबंध / Essay |
Source / Credit | archive.org |
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